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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


इसमे मेरे मन में थोड़ा पेच था। मेरा यह ख्यालथा कि स्टेशन मास्टर लिखित उत्तर तो 'ना' का ही देगा। फिर, कुली बारिस्टर कैसे रहते होगे, इसकी भी वह कल्पना न कर सकेगा। इसलिए अगर मैं पूरे साहबीठाठ में उसके सामने जाकर खड़ा रहूँगा और उससे बात करूँगा तो वह समझ जायेगाऔर शायद मुझे टिकट दे देगा। अतएव मैं फ्राँक कोट, नेकटाई वगैरा डालकरस्टेशन पहुँचा। स्टेशन मास्टर के सामने मैंने गिन्नी निकालकर रखी और पहलेदर्जे का टिकट माँगा।

उसने कहा, 'आपने ही मुझे चिट्ठी लिखी हैं?'

मैंने कहा, 'जी हाँ। यदि आप मुझे टिकट देंगे तो मैं आपका एहसान मानूँगा।मुझे आज प्रिटोरिया पहुँचना ही चाहिये। '

स्टेशन मास्टर हँसा। उसे दया आयी। वह बोला, 'मैं ट्रान्सवालर नहीं हूँ। मैंहाँलैंडर हूँ। आपकी भावना को मैं समझ सकता हूँ। आपके प्रति मेरी सहानुभूतिहै। मैं आपको टिकट देना चाहता हूँ। पर एक शर्त पर, अगर रास्ते में गार्डआपको उतार दे और तीसरे दर्जे में बैठाये तो आप मुझे फाँसिये नहीं, यानी आप रेलवे कम्पनी पर दावा न कीजिये। मैं चाहता हूँ कि आपकी यात्रा निर्विध्नपूरी हो। आप सज्जन हैं, यह तो मैं देख ही सकता हूँ।'

यों कहकर उसमें टिकट काट दिया। मैंने उसका उपकार माना और उसे निश्चित किया।अब्दुलगनी सेठ मुझे बिदा करने आये थे। यह कौतुक देखकर वे प्रसन्न हुए, उन्हें आश्चर्य हुआ। पर मुझे चेताया, 'आप भली भाँति प्रिटोरिया पहुँच जायेतो समझूँगा कि बेड़ा पार हुआ। मुझे डर हैं कि गार्ड आपको पहले दर्जे मेंआराम से बैठने नहीं देगा, और गार्ड ने बैठने दिया तो यात्री नहीं बैठनेदेंगे।'

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