जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
इस मुकदमे के लिएहमने अच्छे से अच्छे बारिस्टर कर रखे है। मुकदमा लम्बा है और गुत्थियों से भरा हैं। इसलिए आपसे मैं आवश्यक तथ्य आदि प्राप्त करने का ही काम लेसकूँगा। पर इतना फायदा अवश्य होगा कि अपने मुवक्किल के साथ पत्र-व्यवहार करने में मुझे अब आसानी हो जायगी और तथ्यादि की जो जानकारी मुझे प्राप्तकरनी होगी, वह मैं आपके द्वारा मँगवा सकूँगा। आपके लिए अभी तक मैंने कोईमकान तो तलाश नहीं किया हैं। सोचा था कि आपको देखने के बाद खोज लूँगा।यहाँ रंगभेद बहुत हैं, इसलिए घर मिलना आसान नहीं है। पर मैं एक बहन कोजानता हूँ। वह गरीब हैं, भटियारे का स्त्री हैं। मेरा ख्याल हैं कि वहआपको टिका लेगी। उसे भी कुछ मदद हो जायगी। चलिये, हम उसके यहाँ चले। '
यों कहकर वे मुझे वहाँ ले गये। मि. बेकर ने उस बहन को एक ओर ले जाकर उससे कुछबाते की और उसने मुझे टिकाना स्वीकार किया। हफ्ते के पैतीस शिलिंग देने कानिश्चय हुआ।
मि. बेकर वकील थे और कट्टर पादरी भी थे। वे आज भी जीवित हैं, और आजकव केवल पादरी का ही काम करते हैं। वकालत उन्होंने छोड दीहैं। रुपये पैसे से सुखी हैं। उन्होंने मेरे साथ अब तक पत्र व्यवहार जारी रखा हैं। पत्रों का विषय एक ही होता हैं। वे अपने पत्रों में अलग-अलग ढंगसे ईसाई धर्म की उत्तमता की चर्चा करते हैं और इस बात का प्रतिपादन करते हैं कि ईसा को ईश्वर का एकमात्र पुत्र और तारनहार माने बिना परम शान्तिनहीं मिल सकती।
हमारी पहली ही मुलाकात में मि. बेकर धर्म-सम्बन्धी मेरी मनःस्थिति जान ली। मैंने उन्हे बता दिया, 'मैं जन्म सेहिन्दू हूँ। इस धर्म का भी मुझे अधिक ज्ञान नहीं हैं। दूसरे धर्मों का भी ज्ञान भी कम ही हैं। मैं कहाँ हूँ, क्या मानता हूँ, मुझे क्या माननाचाहिये, यह सब मैं नहीं जानता। अपने धर्म का अध्ययन मैं गम्भीरता से करना चाहता हूँ। दूसरे धर्मो का अध्ययन भी यथाशक्ति करने का मेरा इरादा हैं। '
यह सब सुनकर मि. बेकर खुश हुए और बोले, 'मैं स्वयं साउथ अफ्रीका जनरल मिशन काएक डायरेक्टर हूँ। मैंने अपने खर्चे से एक गिरजाघर बनवाया हैं। उसमें समय-समय पर धर्म-सम्बन्धी व्याख्यान दिया करता हूँ। '
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