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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


सन् 1892 वर्ष में मैंने ऐसी पुस्तके बहुत पढ़ी।उन सबके नाम तो मुझे याद नहीं हैं, लेकिन उनमे सिटी टेम्पल वाले डॉ. पारकर की टीका, पियर्सन की 'मेनी इनफॉलिबल प्रुफ्स', बटलर की 'एनॉलोजी' इत्यादिपुस्तके थी। इनमे का कुछ भाग तो समझ में न आता, कुछ रुचता और कुछ न रुचता।मैं मि. कोट्स को ये सारी बाते सुनाता रहता। 'मेनी इनफॉलिबल प्रुफ्स' काअर्थ हैं, कई अचूक प्रमाण अर्थात लेखक की राय में बाइबल में जिस धर्म कावर्णन हैं, उसके समर्थन के प्रमाण। मुझ पर इस पुस्तक का कोई प्रभाव नहींपडा। पारकर की टीका नीतिवर्धक मानी जा सकती हैं, पर ईसाई धर्म की प्रचलित मान्यताओं के विषय में शंका रखने वालो को उससे कोई मदद नहीं मिल सकती थी।बटलर की 'एनॉलोजी' बहुत गम्भीर और कठिन पुस्तक प्रतीत हुई। उसे अच्छी तरहसमझने के लिए पाँच-सात बार पढना चाहिये। वह नास्तिक को आस्तिक बनाने कीपुस्तक जान पड़ी। उसमें ईश्वर के अस्तित्व के बारे में दी गयी दलीले मेरेकिसी काम की न थी, क्योंकि वह समय मेरी नास्तिकता का नहीं था। पर ईशा केअद्वितीय अवतार के बारे में और उनके मनुष्य तथा ईश्वर के बीच संधि करनेवाला होने के बारे में जो दलीलें दी गयी थी, उनकी मुझ पर कोई छाप नहींपड़ी।

पर मि. कोट्स हारने वाले आदमी नहीं थे। उनके प्रेम का पार न था। उन्होंने मेरे गले में बैष्णवी कंठी देखी। उन्हें यह वहम जान पड़ाऔर वे दुखी हुए। बोले, 'यह वहम तुम जैसो को शोभा नहीं देता। लाओ इसे तोड़ दूँ।'

'यह कंठी नहीं टूट सकती, माताजी की प्रसादी हैं।'

'पर क्या तुम इसमे विश्वास करते हो?'

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