जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
गोरे व्यापारी चौके। जब पहले-पहले उन्होंने हिन्दुस्तानीमजदूरो का स्वागत किया था, तब उन्हे उनकी व्यापार करने की शक्ति का कोई अन्दाज न था। वे किसान के नाते स्वतंत्र रहें, इस हद तक तो गोरो को उस समयकोई आपत्ति न थी, पर व्यापार में उनकी प्रतिद्वन्द्विता उन्हे असह्य जान पडी।
हिन्दुस्तानियो के साथ उनके विरोध के मूल में यह चीज थी।
उसमें दूसरी चीजे और मिल गयी। हमारी अलग रहन-सहन, हमारी सादगी, हमारा कम नफे सेसंतुष्ट रहना, आरोग्य के नियमों के बारे में हमारी लापरवाही, घर-आँगन को साफ रखने का आलस्य, उनकी मरम्मत में कंजूसी, हमारे अलग-अलग धर्म - ये सारीबाते विरोध को भड़कानेवाली सिद्ध हुई।
यह विरोध प्राप्त मताधिकार को छीन लेने के रुप में और गिरमिटियों पर कर लगाने के कानून के रुप मेंप्रकट हुआ। कानून के बाहर तो अनेक प्रकार से उन्हे परेशान करना शुरू हो हीचुका था।
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