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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


जवाबक्यो मिलता? मैंने बहुत जोर से दरवाजा खटखटाया। दीवार काँप उठी। दरवाजा खुला। अन्दर एक बदचलन औरत को देखा। मैंने उससे कहा, 'बहन, तुम तो यहाँ सेचली ही जाओ। अब फिर कभी इस घर में पैर न रखना।'

साथी से कहा, 'आजसे तुम्हारा और मेरा सम्बन्ध समाप्त होता हैं। मैं खूब ठगाया और मूर्खबना। मेरे विश्वास का यहबदला तो न मिलना चाहिये था।'

साथी बिगड़ा। उसने मेरा सारा पर्दाफाश करने की धमकी दी।

'मेरेपास कोई छिपी चीज हैं ही नहीं। मैंने जो कुछ किया हैं, उसे तुम खुशी सेप्रकट करो। पर तुम्हारे साथ मेरा सम्बन्ध तो अब समाप्त हुआ।'

साथी और गरमाया। मैंने नीचे खड़े मुहर्रिर से कहा, 'तुम जाओ। पुलिससुपरिंटेंडेट से मेरा सलाम बोलो और कहो कि मेरे एक साथी ने मुझे धोखा दिया हैं। मैं उसे अपने घर में रखना नहीं चाहता। फिर भी वह निकलने से इनकारकरता हैं। मेंहरबानी करके मुझे मदद भेजिये।'

अपराध में दीनता होती हैं। मेरे इतना कहने से ही साथी ढीला पड़ा। उसने माफी माँगी।सुपरिंटेंडेट के यहाँ आदमी न भेजने के लिए वह गिड़गिड़ाया औक तुरन्त घरछोडकर जाना कबूल किया। उसने घर छोड़ दिया।

इस घटना ने मुझे जीवन में ठीक समय पर सचेत कर दिया। यह साथी मेरे लिए मोहरुप और अवाँच्छनीय था,इसे मैं इस घटना के बाद ही स्पष्ट रुप में देख सका। इस साथी को रखकर मैंनेअच्छे काम के लिए बुरे साधन को पसन्द किया था। बबूल के पेड़ से आम की आशारखी थी। साथी का चाल-चलन अच्छा नहीं था, फिर भी मैंने मान लिया था कि वहमेरे प्रति वफादार हैं। उसे सुधारने का प्रयत्न करते हुए मैं स्वयं लगभगगन्दी में सन गया था। मैंने हितैषियों की सलाह का अनादर किया था। मोह ने मुझे बिल्कुल अन्धा बना दिया था। यदि इस दुर्घटना से मेरी आँखे न खुलीहोती, तो मुझे सत्य का पता न चलता, तो सम्भव है कि जो स्वार्पण मैं कर सका हूँ, उसे करने में मैं कभी समर्थ न हो पाता। मेरी सेवा सजा अधूरी रहती,क्योंकि वह साथी मेरी प्रगति को अवश्य रोकता। अपना बहुत सा समय मुझे उसकेलिए देना पड़ता। उसमें मुझको अन्धकार में रखने और गलत रास्ते ले जाने कीशक्ति थी ।

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