जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
मुझे क्षण भर दुःख तो हुआ, परमैं सम्पादक का दृष्टिकोण समझ गया। 'बंगवासी' की ख्याति मैंने सुन रखी थी। सम्पादक के पास लोग आते-जाते रहते थे, यह भी मैं देख सका था। वे सब उनकेपरिचित थे। अखबार हमेशा भरापूरा रहता था। उस समय दक्षिण अफ्रीका काम नामभी कोई मुश्किल से जानता था। नित नये आदमी अपने दुखड़े लेकर आते ही रहतेथे। उनके लिए तो अपना दुःख बड़ी-से-बडी समस्या होती, पर सम्पादक के पासऐसे दुःखियों की भीड़ लगी रहती थी। वह बेचारा सबके लिए क्या कर सकता था?पर दुखिया की दृष्टि में सम्पादक की सत्ता बडी चीज होती हैं, हालाँकिसम्पादक स्वयं तो जानता हैं कि उसकी सत्ता उसके दफ्तर की दहलीज भी नहींलाँध पाती।
मैं हारा नहीं। दूसरे सम्पादको से मिलता रहा। अपने रिवाजो के अनुसार मैं अंग्रेजो से भी मिला। 'स्टेट्समैंन' और'इंग्लिशमैन' दोनों दक्षिण अफ्रीका के सवाल का महत्व समझते थे। उन्होंने लम्बी मुलाकाते छापी। 'इंग्लिशमैन' के मि. सॉंडर्स ने मुझे अपनाया। मुझेअखबार का उपयोग करने की पूरी अनुकूलता प्राप्त हो गयी। उन्होंने अपने अग्रलेख में काटछाँट करने की भी छूट मुझे दे दी। यह कहना अतिशयोक्ति नहोगी कि हमारे बीच स्नेह का सम्बन्ध हो गया। उन्होंने मुझे वचन दिया कि जो मदद उनसे हो सकेगी, वे करते रहेंगे। मेरे दक्षिण अफ्रीका लौट जाने पर भीउन्होंने मुझ से पत्र लिखते रहने को कहा और वचन दिया कि स्वयं उनसे जो कुछहो सकेगा, वे करेंगे। मैने देखा कि इस वचन का उन्होंने अक्षरशः पालनकिया, औऱ जब तक वे बहुत बीमार हो गये, मुझसे पत्र व्यवहार करते रहे। मेरेजीवन में ऐसे अनसोचे मीठे सम्बन्ध अनेक जुड़े हैं। मि. सॉडर्स को मेरी जोबात अच्छी लगी, वह थी तिशयोक्ति का अभाव और सत्य-परायणता। उन्होंने मुझ से जिरह करने में कोई कसर नहीं रखी थी। उसमें उन्होंने अनुभव किया कि दक्षिणअफ्रीका के गोरो के पक्ष को निष्पक्ष भाव से रखने में औऱ भारतीय पक्ष सेउसकी तुलना करने में मैने कोई कमी नहीं रखी थी।
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