लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


सो कुछ भी हो, भागने के काम में उलझ जाने से मैं अपनी चोटोंको भूल गया। मैंने हिन्दुस्तानी सिपाही की वर्दी पहनी। कभी सिर पर मार पड़े तो उससे बचने के लिए माथे पर पीतल की तश्तरी रखी और ऊपर से मद्रासीतर्ज का बड़ा साफा बाँधा। साश में खुफिया पुलिस के दो जवान थे। उनमे से एकने हिन्दुस्तानी व्यापारी की पोशाक पहनी और अपना चहेरी हिन्दुस्तानी कीतरह रंग लिया। दुसरे ने क्या पहना, सो मैं भूल गया हूँ। हम बगल की गली मेंहोकर पड़ोस की दुकान में पहुँचे और गोदाम में लगी हुई बोरों की थप्पियोंको अंधेरे में लाँधते हुए दुकान के दरवाजे से भीड़ में घुस कर आगे निकलगये। गली के नुक्कड़ पर गाड़ी खड़ी थी उसमें बैठकर अब मुझे उसी थाने मेंले गये, जिसमे आश्रय लेने की सलाह सुपरिटेण्डेण्ट एलेक्जेण्डर ने पहले दीथी। मैंने सुपरिटेण्डेण्ट एलेक्जेण्डर और खुफिया पुलिस के अधिकारियों कोधन्यवाद दिया।

इस प्रकार जब एक तरफ से मुझे ले जाया जा रहा था,तब दूसरी तरफ सुपरिटेण्डेण्ट एलेक्जेण्डर भीड़ से गाना गवा रहे थे। उस गीतका अनुवाद यह हैं :

'चलो, हम गाँधी के फांसी पर लटका दे, इमली के उस पेड़ पर फांसी लटका दे।'

जब सुपरिटेण्डेण्ट एलेक्जेण्डर को मेरे सही-सलामत थाने पर पहुँच जाने की खबरमिली तो उन्होंने भीड़ से कहा, 'आपका शिकार तो इस दुकान से सही सलामत निकलभागा हैं।' भीड़ में किसी को गुस्सा आया, कोई हँसा, बहुतों नें इस बात कोमानने से इन्कार किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book