जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
मैंने जवाब दिया, 'मुझे किसी पर मुकदमा नहीं चलानाहैं। सम्भव हैं, हमला करनेवालों में से एक-दो को मैं पहचान लूँ, पर उन्हें सजा दिलाने से मुझे क्या लाभ होगा? फिर, मैं हमला करनेवालो को दोषी भीनहीं मानता। उन्हें तो यह कहा गया हैं कि मैंने हिन्दुस्तान में अतिशयोक्तिपूर्ण बाते कहकर नेटाल के गोरों को बदनाम किया हैं। वे इस बातको मानकर गुस्सा हो तो इसमे आश्चर्य क्या हैं? दोष तो बड़ो का और मुझे कहने की इजाजत दे तो आपका माना जाना चाहिये। आप लोगों को सही रास्ता दिखासकते थे, पर आपने माना और कल्पना कर ली कि मैंने अतिशयोक्ति की होगी। मुझेकिसी पर मुकदमा नहीं चलाना हैं। जब वस्तुस्थिति प्रकट होगी और लोगों कोपता चलेगा, तो वे खुद पछतायेगे।'
'तो आप मुझे यह बात लिख कर दे देंगे? मुझे मि. चेम्बरलेन को इस आशय का तार भेजना पड़ेगा। मैं नहीं चाहताकि आप जल्दी में कुछ लिखकर दे दें। मेरी इच्छा यह हैं कि आप मि. लाटन सेऔऱ अपने मित्रों सं सलाह करके जो उचित जान पड़े सो करे। हाँ, मैं यहस्वीकार करता हूँ कि यदि आप हमला करनेवालों पर मुकदमा नहीं चलायेंगे तो सबओर शान्ति स्थापित करने में मुझें बहुत मदद मिलेगी औऱ आपकी प्रतिष्ठा तोनिश्चत ही बढेगी।'
मैंने जवाब दिया, 'इस विषय में मेरे विचारपक्के हो चुके हैं। यह निश्चय समझिये कि मुझे किसी पर मुकदमा नहीं चलानाहैं, इसलिए मैं आपको यहीं लिखकर दे देना चाहता हूँ।'
यह कहकर मैं आवश्यक पत्र लिखकर दे दिया।
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