लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


रोज सबेरेवहाँ जाना होता था। आने-जाने में और अस्पताल काम करने प्रतिदिन लगभग दो घंटे लगते थे। इस काम से मुझे थोड़ी शान्ति मिली। मेरा काम बीमार की हालतसमझकर उसे डॉक्टर को समझाने और डॉक्टर की लिखी दवा तैयार करके बीमार को दवा देने का था। इस काम से मैं दुखी-दर्दी हिन्दुस्तानियों के निकटसम्पर्क में आया। उनमें से अधिकांश तामिल, तेलुगु अथवा उत्तर हिन्दुस्तान के गिरमिटया होते थे।

यह अनुभव मेरे भविष्य में बहुत उपयोगीसिद्ध हुआ। बोअर-युद्ध के समय घायलो की सेवा-शुश्रूषा के काम में और दूसरेबीमारो की परिचर्चा में मुझे इससे बड़ी मदद मिली।

बालकों केपालन-पोषण का प्रश्न तो मेरे सामने था ही। दक्षिण अफ्रीका में मेरे दोलड़के और हुए। उन्हे किस तरह पाल-पोसकर बड़ा किया जाय, इस प्रश्न को हलकरने में मुझे इस काम ने अच्छी मदद की। मेरा स्वतंत्र स्वभाव मेरी कड़ीकसौटी करता था, और आज भी करता हैं। हम पति-पत्नी ने निश्चय किया था किप्रसूति आदि का काम शास्त्रीय पद्धति से करेंगे। अतएव यद्यपि डॉक्टर औरनर्स की व्यवस्था की गयी थी, तो भी प्रश्न था कि कहीँ ऐन मौके पर डॉक्टर नमिला औऱ दाई भाग गई, तो मेरी क्या दशा होगी? दाई तो हिन्दुस्तानी ही रखनीथी। तालीम पायी हुई हिन्दुस्तानी दाई हिन्दुस्तान में भी मुश्किल से मिलतीहैं, तब दक्षिण अफ्रीका की तो बात ही क्या कहीं जाय? अतएव मैंनेबाल-संगोपन का अध्ययन कर लिया। डॉ. त्रिभुवन दास की 'मा ने शिखामण' (माताकी सीख) नामक पुस्तक मैंने पढ़ ड़ाली। यह कहा जा सकता है कि उसमेंसंशोधन-परिवर्धन करके अंतिम दो बच्चो को मैंने स्वयं पाला-पोसा। हर बारदाई की मदद कुछ समय के लिए ली -- दो महीने से ज्यादा तो ली ही नहीं, वह भीमुख्यतः धर्मपत्नी की सेवा के लिए ही। बालकों को नहलाने-घुलाने का कामशुरू में मैं ही करता था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book