लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


जाग्रत होनेके बाद भी दो बार तो मैं विफल ही रहा। प्रयत्न करता परन्तु गिर पड़ता। प्रयत्न में मुख्य उद्देश्य था, सन्तानोत्पत्ति को रोकना। उसके बाह्यउपचारो के बारे में मैंने विलायत में कुछ पढ़ा था। डॉ. एलिन्सन के इन उपायो के प्रचार का उल्लेख मैं अन्नाहार-विषयक प्रकरण में कर चुका हूँ।उसका थोड़ा और क्षणिक प्रभाव मुझ पर पड़ा था। पर मि. हिल्स ने उसका जो विरोध किया था और आन्तरिक साधन के -- संयम के -- समर्थन में जो कहा था,उसका प्रभाव मुझ पर बहुत अधिक पड़ा और अनुभव से वह चिरस्थायी बन गया। इसलिए सन्तानोत्पत्ति की अनावश्यकता ध्यान में आते ही मैंने संयम-पालन काप्रयत्न शुरू कर दिया।

संयम पालन की कठिनाईयों का पार न था। हमने अलग खाटें रखी। रात में पूरी तरह थकने के बाद ही सोने का प्रयत्न किया। इससारे प्रयत्न का विशेष परिणाम मैं तुरन्त नहीं देख सका। पर आज भूतकाल पर निगाह डालते हुए देखता हूँ कि इन सब प्रयत्नो में मुझे अंतिम निश्चय का बलदिया।

अंतिम निश्चय तो मैं सन् 1906 में ही कर सका था। उस समयसत्याग्रह का आरम्भ नहीं हुआ था। मुझे उसका सपना तक नहीं आया था। बोअर-युद्ध के बाद नेटाल में जुलू 'विद्रोह' हुआ। उस समय मैं जोहानिस्बर्गमें वकालत करता था। पर मैंने अनुभव किया कि इस 'विद्रोह' के मौके पर भीमुझे अपनी सेवा नेटाल सरकार को अर्पण करनी चाहिये। मैंने सेवा अर्पण की औरवह स्वीकृत हुई। उसका वर्णन आगे आयेगा। पर इस सेवा के सिलसिले में मेरे मन में संयम-पालन के तीव्र विचार उत्पन्न हुए। अपने स्वभाव के अनुसार मैंनेसाथियों से इसकी चर्चा की। मैंने अनुभव किया कि सन्तानोत्पत्ति और सन्तानका लालन-पालन सार्वजनिक सेवा के विरोधी हैं। इस 'विद्रोह' में सम्मिलितहोने के लिए मुझे जोहानिस्बर्ग की अपनी गृहस्थी उजाड़ देनी पड़ी थी।टीप-टाप से बसाये गये घर का और साज-समान का, जिसे बसाये मुश्किल से एकमहीना हुआ होगा, मैंने त्याग कर दिया। पत्नी और बच्चो को फीनिक्स में रखदिया और मैं डोली उठाने वालो की टुकड़ी लेकर निकल पड़ा। कठिन कूच करते हुएमैंने देखा कि यदि मुझे लोकसेवा में ही तन्मय हो जाना हो तो पुत्रैषणा और वितैषणा का त्याग करना चाहिये और वानप्रस्थ-धर्म पालना चाहिये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book