लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


अंग्रेजो राज्य करे, देशी रहे दबाई देशी रहे दबाईस जोने बेनां शरीर भाई।पेलो पाँच हाथ पूरो, पूरो पाँच से नें।।

(अंग्रेजराज्य करते हैं और हिन्दुस्तानी दबे रहते हैं। दोनों के शरीर तो देखो। वेपूरे पाँच हाथ के हैं। एक एक पाँच सौ के लिए काफी हैं।)

इन सब बातो का मेरे मन पर पूरा-पूरा असर हुआ। मैं पिघला। मैं यह मानने लगा किमाँसाहार अच्छी चीज हैं। उससे मैं बलबान और साहसी बनूँगा। समूचा देश माँसाहार करे, तो अंग्रेजो को हराया जा सकता हैं। माँसाहार शुरू करने कादिन निश्चित हुआ। इस निश्चय -- इस आरम्भ का अर्थ सब पाठक समझ नहीं सकेंगे। गाँधी परिवार वैष्णव सम्प्रदाय का हैं। माता-पिता बहुत कट्टर वैष्णव मानेजाते थे। हवेली ( वैष्णव-मन्दिर) में हमेशा जाते थे। कुछ मन्दिर तो परिवारके ही माने जाते थे। फिर गुजरात में जैन सम्प्रदाय का बड़ा जोर हैं। उसकाप्रभाव हर जगह, हर काम में पाया जाता हैं। इसलिए माँसाहार का जैसा विरोध और तिरस्कार गुजरात में और श्रावको तथा वैष्णवों में पाया जाता हैं, वैसाहिन्दुस्तान या दुनिया में और कहीं नहीं पाया जाता। ये मेरे संस्कार थे।

मैं माता-पिता का परम भक्त था। मैं मानता था कि वे मेरे माँसाहार की बातजानेंगे तो बिना मौत के उनकी तत्काल मृत्यु हो जायेगी। जाने-अनजाने मैं सत्य का सेवक तो था ही। मैं ऐसा नहीं कह सकता कि उस समय मुझे यह ज्ञान नथा कि माँसाहार करने में माता-पिता को देना होगा।

ऐसी हालत में माँसाहार करने का मेरी निश्चय करने का मेरे लिए बहुत गम्भीरऔर भयंकर बात थी।

लेकिन मुझे तो सुधार करना था। माँसाहार का शौक नहीं था। यह सोचकर कि उसमें स्वादहैं, मैं माँसाहार शुरू नहीं कर रहा था। मुझे तो बलबान और साहसी बनना था,दूसरों को वैसा बनने के लिए न्योतना था फिर अंग्रेजो को हराकर हिन्दुस्तानको स्वतंत्र करना था। स्वराज शब्द उस समय मैंने सुना नहीं था। सुधार के इस जोश में मैं होश भूल गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book