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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


जैसे स्वयंसेवक थे, वैसे ही प्रतिनिधि थे। उन्हें भी इतने ही दिनो कीतालीम मिलती थी। वे अपने हाथ से अपना कोई भी काम न करते थे।

सब बातो में उनके हुक्म छूटते रहते थे। 'स्वयंसेवक यह लाओ, स्वयंसेवक वहलाओ' चला ही करता था।

अखा भगत (गुजरात के एक भक्तकवि। इन्होने अपने एक छप्पय में छुआछूत को 'आभडछेटअदकेरो अंग' कहकर उसका विरोध किया हैं और कहा हैं कि हिन्दू धर्म मेंअस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं हैं।) के 'अदकेरा अंग' 'अतिरिक्त अंग'का भी ठीक-ठीक अनुभव हुआ। छुआछूत को मानने वाले वहाँ बहुत थे। द्राविड़ीरसोई बिल्कुल अलग थी। उन प्रतिनिधियों को तो 'दृष्टिदोष' भी लगता था !उनके लिए कॉलेज के अहाते में चटाइयो का रसोईघर बनाया गया था। उसमें घुआँइतना रहता था कि आदमी का दम घुट जाय। खाना-पीना सब उसी के अन्दर। रसोईघरक्या था, एक तिजोरी थी। वह कहीं से भी खुला न था।

मुझे यह वर्णधर्म उलटा लगा। कांग्रेस में आने वाले प्रतिनिधि जब इतनी छुआछूत रखतेहैं, तो उन्हें भेजने वाले लोग कितनी रखते होंगे? इस प्रकार का त्रैराशिकलगाने से जो उत्तर मिला, उस पर मैंने एक लम्बी साँस ली।

गंदगी की हद नहीं थी। चारो तरफ पानी ही पानी फैल रहा था। पखाने कम थे। उनकीदुर्गन्ध की याद आज भी मुझे हैरान करती हैं। मैंने एक स्वयंसेवक को यह सब दिखाया। उसने साफ इनकार करते हुए कहा, 'यह तो भंगी का काम हैं।' मैं झाड़ूमाँगा। वह मेरा मुँह ताकता रहा। मैंने झाडू खोज निकाला। पाखाना साफ किया।पर यह तो मेरी अपनी सुविधा के लिए हुआ। भीड़ इतनी ज्यादा थी और पाखानेइतने कम थे कि हर बार के उपयोग के बाद उनकी सफाई होनी जरूरी थी। यह मेरीशक्ति के बाहर की बात थी। इसलिए मैंने अपने लायक सुविधा करके संतोष माना।मैंने देखा कि दूसरो को यह गंदगी जरा भी अखरती न थी।

पर बात यहीं खतम नहीं होती। रात के समय कोई-न-कोई तो कमरे के सामने वाले बरामदे में हीनिबट लेते थे। सवेरे स्वयंसेवको को मैंने मैंला दिखाया। कोई साफ करने को तैयार न था। उसे साफ करने का सम्मान भी मैंने ही प्राप्त किया।

यद्यपि अब इन बातो में बहुत सुधार हो गया हैं, फिर भी अविचारी प्रतिनिधि अब तककांग्रेस के शिविर को जहाँ-तहाँ कांग्रेस के शिविर को जहाँ-तहाँ मल त्याग करके गन्दा करते हैं और सब स्वयंसेवक उसे साफ करने के लिए तैयार नहींहोते।

मैंने देका कि अगर ऐसी गंदगी में कांग्रेस की बैठक अधिक दिनो तक जारीरहती, तो अवश्य बीमारी फैल जाती।

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