लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


जब-जब ऐसा भोजन मिलता, तब-तबघर पर तो भोजन हो ही नहीं सकता था। जब माताजी भोजन के लिए बुलाती, तब 'आज भूख नहीं हैं, खाना हजम नहीं हुआ हैं' ऐसे बहाने बनाने पड़ते थे। ऐसा कहतेसमय हर बार मुझे भारी आघात पहुँचता था। यह झूठ, सो भी माँ के सामने ! औरअगर माता-पिता को पता चले कि लड़के माँसाहारी हो गये हैं तब तो उन परबिजली ही टूट पड़ेगी। ये विचार मेरे दिल को कुरेदते रहते थे, इसलिए मैंनेनिश्चय किया: 'माँस खाना आवश्यक हैं, उसका प्रचार करके हम हिन्दुस्तान कोसुधारेंगे ; पर माता-पिता को धोखा देना और झूठ बोलना तो माँस न खाने से भी बुरा हैं। इसलिए माता-पिता के जीते जी माँस नहीं खाना चाहिये। उनकी मृत्युके बाद, स्वतंत्र होने पर खुले तौर से माँस खाना चाहिये और जब तक वह समय नआवे, तब तक माँसाहार का त्याग करना चाहिये। ' अपना यह निश्चय मैंने मित्रको जता दिया, और तब से माँसाहार जो छूटा, सो सदा के छूटा। माता-पिता कभीयह जान ही न पाये की उनके दो पुत्र माँसाहार कर चुके हैं।

माता-पिता को धोखा न देने के शुभ विचार से मैंने माँसाहार छोड़ा, पर वह मित्रता नहीँछोड़ी। मैं मित्र को सुधारने चला था, पर खुद ही गिरा, और गिरावट का मुझेहोश तक न रहा।

इसी सोहब्बत के कारण मैं व्यभिचार में भी फँस जाता। एक बार मेरे ये मित्र मुझे वेश्याओं की बस्ती में ले गये। वहाँ मुझेयोग्य सूचनायें देकर एक स्त्री के मकान में भेजा। मुझे उसे पैसे वगैरा कुछदेना नहीं था। हिसाब हो चुका था। मुझे तो सिर्फ दिल-बहलाव की बातें करनीथी। मैं घर में घुस तो गया, पर जिसे ईश्वर बचाना हैं, वह गिरने की इच्छारखते हुए भी पवित्र रह सकता हैं। उस कोठरी में मैं तो अँधा बन गया। मुझेबोलने का भी होश न रहा। मारे शरम के सन्नाटे में आकर उस औरत के पास खटिया पर बैठा, पर मुँह से बोल न निकल सका। औरत ने गुस्से में आकर मुझे दो-चारखरी-खोटी सुनायी और दरवाजे की राह दिखायी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book