जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
किसीको भगवान की दया के विषय में शंका हो, तो उसे ऐसे तीर्थक्षेत्र देखने चाहिये। वह महायोगी अपने नाम पर कितना ढोग, अधर्म, पाखंड इत्यादि सहन करताहैं? उसने तो कह रखा हैं :
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
अर्थात् 'जैसी करनी वैसी भरनी। ' कर्म को मिथ्या कौन कर सकता हैं ? फिर भगवान कोबीच में पड़ने की जरूरत ही क्या है? वह तो अपने कानून बनाकर निवृत्त-सा हो गया हैं।
यह अनुभव लेकर मैं मिसेज बेसेंट के दर्शन करने गया। मैं जानता था कि वे हाल ही बीमारी से उठी हैं। मैंने अपना नाम भेजा। वे तुरन्तआयी। मुझे तो दर्शन ही करने थे, अतएव मैंने कहा, 'मुझे आपके दुर्बल स्वास्थ्य का पता हैं। मैं तो सिर्फ आपके दर्शन करने आया हूँ। दुर्बलस्वास्थ्य के रहते भी आपने मुझे मिलने की अनुमति दी, इसी से मुझे संतोषहैं। मैं आपका अधिक समय नहीं लेना चाहता। '
यह कहकर मैंने बिदा ली।
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