लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


इस विषय पर आने के पहलेथोड़ा अंग्रेज अधिकारियों के अविचार और अज्ञान का अपना अनुभव सुना दूँ। ज्युडीशियल असिस्टेंट कहीँ एक जगह टिक कर नहीं बैठते थे। उनकी सवारी घूमतीरहती थी -आज यहाँ, कल वहाँ। जहाँ वे महाशय जाते थे, वहाँ वकीलों और मवक्किलो को भी जाना होता था। वकील का मेंहनताना जिनता केन्द्रिय स्थान परहोता, उससे अधिक बाहर होता था। इसलिए मुवक्किल को सहज ही दुगना खर्च पड़ जाता था। पर जज इसका बिल्कुल विचार न करता था।

इस अपील की सुनवाई वेरावल में होने वाली थी। वहाँ उन दिनों बड़े जोर का प्लेग था। मुझे यादहै कि रोज के पचास केस होते थे। वहाँ की आबादी 5500 के लगभग थी। गाँव प्रायः खाली हो गया था। मैं वहाँ की निर्जन धर्मशाला में टिका था। वह गाँवसे कुछ दूर थी। पर बेचारे मुवक्किल क्या करते? यदि वे गरीब होते तो एक भगवान ही उनका मालिक था।

मेरे नाम वकील मित्रों का तार आया था किमैं साहब से प्रार्थना करूँ कि प्लेग के कारण वे अपना मुकाम बदल दे।प्रार्थना करने पर साहब ने मुझ से पूछा, ' आपको कुछ डर लगता है?'

मैंने कहा, 'सवाल मेरे डरने का नहीं हैं। मैं मानता हूँ कि मैं अपनाप्रबन्ध कर लूँगा, पर मुवक्किलो का क्या होगा?'

साहब बोले, 'प्लेग ने तो हिन्दुस्तान में घर कर लिया है। उससे क्या डरना?वेरावल की हवा कैसी सुन्दर है ! (साहब गाँव से दूर समुद्र किनारे एक महलनुमा तंबू में रहते थे।) लोगों को इस तरह बाहर रहना सीखना चाहिये।'

इसफिलासफी के आगे मेरी क्या चलती? साहब ने रिश्तेदार से कहा, 'मि.गाँधी की बात को ध्यान में रखिये और अगर वकीलों तथा मुवक्किलों को बहुत असुविधाहोतीहो तो मुझे बतलाइये।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book