लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


'हाँ, भाई।'

'मुझे अब इसमे से निकालिये न? मैं जला जा रहा हूँ।'

'क्यो, क्या पसीना छूट रहा है?'

'मैं तो भीग गया हूँ। अब मुझे निकालिये न, बापूजी !'

मैंने मणिलाल का माथा देखा। माथे पर पसीने की बूंदें दिखाई दी। बुखार कमहो रहा था। मैंने ईश्वर का आभार माना।

'मणिलाल, अब तुम्हारा बुखार चला जायगा। अभी थोड़ा और पसीना नहीं आनेदोगे?'

'नहीं बापू ! अब तो मुझे निकाल लीजिये। फिर दुबारा और लपेटना हो तो लपेटदीजियेगा।'

मुझे धीरज आ गया था, इसलिए उसे बातो में उलझा कर कुछ मिनट और निकाल दिये। उसकेमाथे से पसीने की धाराये बह चली। मैंने चादर खोली, शरीर पोंछा और बाप-बेटेसाथ सो गये। दोनों ने गहरी नींद ली।

सवेरे मणिलाल का बुखार हलका हो गया था। दूध और पानी तथा फलो के रस पर वह चालीस दिन रहा। मैं निर्भय होचुका था। ज्वर हठीला था, पर वश में आ गया था। आज मेरे सब लड़को में मणिलालका शरीर सबसे अधिक सशक्त हैं।

मणिलाल का नीरोग होना राम की देनहैं, अथवा पानी के उपचार की, अल्पाहार की और सार-संभाल की, इसका निर्णय कौन कर सकता है? सब अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार जैसा चाहे, करें। मैंनेतो यह जाना कि ईश्वर ने मेरी लाज रखी, और आज भी मैं यही मानता हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book