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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


मोती की बूँदों के उस प्रेमबाण ने मुझे बेध डाला। मैं शुद्ध बना। इस प्रेमको तो अनुभवी ही जान सकता हैं।

रामबाण वाग्यां रे होय ते जाणे।
(राम की भक्ति का बाण जिसे लगा हो वही जान सकता हैं।)

मेरे लिए यह अंहिसा का पदार्थपाठ था। उस समय तो मैंने इसमें पिता के प्रेम केसिवा और कुछ नहीं देखा, पर आज मैं इसे शुद्ध अंहिसा के नाम से पहचान सकता हूँ। ऐसी अंहिसा के व्यापक रुप धारण कर लेने पर उसके स्पर्श से कौन बचसकता हैं? ऐसी व्यापक अंहिसा की शक्ति की थाह लेना असम्भव हैं।

इस प्रकार की शान्त क्षमा पिताजी के स्वभाव के विरुद्ध थी। मैंने सोचा था किवे क्रोध करेंगे, शायद अपना सिर पीट लेंगे। पर उन्होंने इतनी अपार शान्ति जो धारण की, मेरे विचार उसका कारण अपराध की सरल स्वीकृति थी। जो मनुष्यअधिकारी के सम्मुख स्वेच्छा से और निष्कपट भाव से अपराध स्वीकार कर लेताहैं और फिर कभी वैसा अपराध न करने की प्रतिज्ञा करता हैं, वह शुद्धतमप्रायश्चित करता हैं।

मैं जानता हूँ कि मेरी इस स्वीकृति से पिताजी मेरे विषय में निर्भय बने औरउनका महान प्रेम और भी बढ़ गया।

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