जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....
पर जब 'नये इकरार'(न्यू टेस्टामेंट ) पर आया, तो कुछ और हू असर हुआ। ईसा के 'गिरि प्रवचन' का मुझ पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। उसे मैंने हृदय में बसा लिया। बुद्धिमें गीता के साथ उसकी तुलना की। 'जो तुझसे कुर्ता माँगे उसे अंगरखा भी दे', 'जो तेरे दाहिने गाल पर तमाचा मारे, बायाँ गाल भी उसके सामने कर दे'- यह पढकर मुझे अपार आनन्द हुआ। शामल भट् ( यह छप्पय प्रकरण 10 के अन्त में दिया गया हैं। शामळ भट् 18वीं सदी के गुजराती के एक प्रसिद्ध कवि हैं।छप्पय पर उनका जो प्रभुत्व था, उसके कारण गुजरात में यह कहावत प्रचलित होगयी हैं कि 'छप्पय तो शामळ के') के छप्पय की याद आ गयी। मेरे बालमन नेगीता, आर्नल्ड कृत बुद्ध चरित और ईसा के वचनो का एकीकरण किया। मन को यहबात जँच गयी कि त्याग में धर्म हैं।
इस वाचन से दूसरे धर्माचार्यो की जीवनियाँ पढ़ने की इच्छा हुई। किसी मित्र ने कार्लाइल की'विभूतियाँ और विभूति पूजा' (हीरोज़ एंड हीरो-वर्शिप) पढने की सलाह दी। उसमें से मैंने पैगम्बर की (हजरत मुहम्मद) का प्रकरण पढ़ा और मुझे उनकीमहानता, वीरता और तपश्चर्या का पता चला।
मैं धर्म के इस परिचय से आगे न बढ़ सका। अपनी परीक्षा की पुस्तकों के अलावा दूसरा कुछ पढ़ने कीफुरसत मैं नहीं निकाल सका। पर मेरे मन ने यह निश्चय किया कि मुझे धर्म पुस्तके पढ़नी चाहिये और सब धर्मों का परिचय प्राप्त कर लेना चाहिये।
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