लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

57 पाठक हैं

प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....


उन दिनों मैं यहबिल्कुल नहीं जानता था कि धर्म क्या हैं, और वह हम में किस प्रकार काम करता हैं। उस समय तो लौकिक दृष्टि से मैं यहीं समझा कि ईश्वर ने मुझे बचालिया हैं। पर मुझे विविध क्षेत्रो में ऐसे अनुभव हुए हैं। मैं जानता हूँ कि 'ईश्वर ने बचाया' वाक्य का अर्थ आज मैं अच्छी तरह समझने लगा हूँ। परसाथ ही मैं यह भी जानता हूँ कि इस वाक्य की पूरी कीमत अभी तक मैं आँक नहीं सका हूँ। वह तो अनुभव से ही आँकी जा सकती हैं। पर मैं कह सकता हूँ कि कईआध्यात्मिक प्रसंगों में वकालत के प्रसंगो में, संस्थाये चलाने में, राजनीति में 'ईश्वर नें मुझे बचाया हैं।' मैंने यह अनुभव किया हैं कि जबहम सारी आशा छोड़कर बैठ जाते हैं, हमारे हाथ टिक जाते हैं, तब कहीँ न कही से मदद आ ही पहुँचती हैं। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं हैं, बल्किहमारा खाना -पीना, चलना-बैठना जितना सच हैं, उससे भी अधिक सच यह चीज हैं।यह कहनें में अतिशयोक्ति नहीं कि यही सच हैं और सब झूठ हैं।

ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना, निरा वाणी-विलास नहीं होती। उसका मूल कण्ठ नहीं,हृदय हैं। अतएव यदि हम हृदय की निर्मलता को पा ले, उसके तारो को सुसंगठितरखे, तो उनमें से जो सुर निकलते हैं, वे गगन गामी होते हैं। उसके लिए जीभकी आवश्यकता नहीं होती। वह स्वभाव से ही अद्भूत वस्तु हैं। इस विषय मेंमुझे कोई शंका ही नहीं हैं कि विकार रुपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिकउपासना एक रामबाण औषधि हैं। पर इस प्रसादी के लिए हम में संपूर्ण नम्रता होनी चाहिये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book