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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6042
आईएसबीएन :9788170287285

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प्रस्तुत है महात्मा गाँधी की आत्मकथा ....

मेरी परेशानी


बैरिस्टर कहलाना आसान मालूम हुआ, पर बैरिस्टरी करना मुश्किल लगा। कानून पढ़े, परवकालत करना न सीखा। कानून में मैंने कई धर्म-सिद्धान्त पढ़े, जो अच्छे लगे। पर यह समझ में न आया कि इस पेशे में उनका उपयोग कैसे किया जा सकेगा।'अपनी सम्पत्ति का उपयोग तुम इस तरह करो कि जिससे दूसरे की सम्पत्ति कोहानि न पहुँचे' यह एक धर्म-वचन हैं। पर मैं यह न समझ सका कि मुवक्किल केमामले में इसका उपयोग कैसे किया जा सकता था। जिस मुकदमों में इस सिद्धान्त का उपयोग हुआ था, उन्हें मैं पढ़ गया। पर उससे मुझे इस सिद्धान्त का उपयोगकरने की युक्ति मालूम न हुई।

इसके अलावा, पढ़े हुए कानूनों में हिन्दुस्तान के कानून का तो नाम तक न था। मैं यह जान ही न पाया कि हिन्दुशास्त्र और इस्लामी कानून कैसे हैं। न मैं अर्जी-दावा तैयार करना सीखा।मैं बहुत परेशान हुआ। फ़िरोजशाह मेंहता का नाम मैंने सुना था। वे अदालतोंमें सिंह की तरह गर्जना करते थे। विलायत में उन्होंने यह कला कैसे सीखी होगी? उनके जितनी होशियारी तो इस जीवन में आ नहीं सकती। पर एक वकील केनाते आजीविका प्राप्त करने की शक्ति पाने के विषय में भी मेरे मन में बड़ी शंका उत्पन्न हो गयी।

यह उलझन उसी समय से चल रही थी, जब मैं कानून का अध्ययन करने लगा था। मैंने अपनी कठिनाईयाँ एक-दो मित्रो के सामनेरखी। उन्होंने सुझाया कि मैं नौरोजी की सलाह लूँ। यह तो मैं पहले ही लिखचुका हूँ कि दादा भाई के नाम एक पत्र मेरे पास था। उस पत्र का उपयोग मैंनेदेर से किया। ऐसे महान पुरुष से मिलने जाने का मुझे क्या अधिकार था? कहीं उनका भाषण होता, तो मैं सुनने जाता और एक कोने में बैटकर आँख और कान कोतृप्त करके लौट आता। विद्यार्थियो से सम्पर्क रखने के लिए उन्होंने एक मंडली की भी स्थापना की थी। मैं उसमें जाता रहता था। विद्यार्थियो केप्रति दादाभाई की चिन्ता देखकर और उनके प्रति विद्यार्थियो का आदर देखकर मुझे आनन्द होता था। आखिर मैंने उन्हें अपने पास का सिफारिशी पत्र देने कीहिम्मत की। मैं उनसे मिला। उन्होंने मुझसे कहा,'तुम मुझ से मिलना चाहो और कोई सलहा लेना चाहो तो जरूर मिलना।' पर मैंने उन्हें कभी कोई कष्ट नहींदिया। किसी भारी कठिनाई के सिवा उनका समय लेना मुझे पाप जान पड़ा। इसलिएउक्त मित्र की सलाह मान कर दादाभाई के सम्मुख अपनी कठिनाईयाँ रखने की मेरीहिम्मत न पड़ी।

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