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नाटक-एकाँकी >> बापू कैद में

बापू कैद में

राजेन्द्र त्यागी

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :86
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6047
आईएसबीएन :978-81-89859-65

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यह व्यंग्य-नाटक विशेष रूप से राजनीति में बापू के नाम के दुरुपयोग और उनके आदर्श व सिद्धांतों के दोहन पर आधारित है।

Bapoo Kaid Mein a hindi book by Rajendra Tyagi - बापू कैद में - राजेन्द्र त्यागी

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


आवाज : ठीक, बहुत ठीक। वैसे भी तुम लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे, क्योंकि अब मैं आजाद हूँ, देहमुक्त हूँ (विराम) तुम्हीं ने तो अपनी गोली से मुझे आजाद किया था। ...हाँ-हाँ, मुझे आजाद किया था और बापू को कैद !
(कुछ देर रुकने के बाद) हाँ, मैं ठीक कह रहा हूं, बापू तुम्हारी कैद में हैं। ...तुम्हीं ने उन्हें कैद में रखा है और तुम्हीं बापू की समाधि पर...! (बल देते हुए ) हाँ-हाँ-हाँ ! आत्मविहीन समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित करते रहे हो। है ना मजाक !...तुम नेता ही नहीं, अव्वल दर्जे के अभिनेता भी हो। जाओ पहले बापू को आजाद करो और फिर आना उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने।

(क्षण-भर रुकने के बाद, अट्टहास का स्थान सिसकियाँ ले लेती हैं और रुँधे गले से वही आवाज पुनः आती है) ...नहीं-नहीं, तुम बापू को कभी का आजाद नहीं करोगे, क्योंकि तुममे इतना साहस ही नहीं हा। ....तुम डरपोक हो। तुम जानते हो, बापू यदि आजाद हो गए तो देश में क्रांति आ जाएगी और तुम्हारी दुकानदारी बंद हो जाएगी।
(रूदन बंद और पुनः अट्टहास) जाओ...अपने-अपने घर लौट जाओ। नाटक बंद करो। सिंहासन तुम्हारी प्रतीक्षा में है। बापू जब तक कैद हैं, तब तक तुम्हारा सिंहासन अटल है।...क्यों गृहमंत्रीजी, ठीक कहा ना मैंने ? मैं भी जा रहा हूँ, तुम भी लौट जाओ।...
बापू आज भी प्रसंगिक हैं। आम जन के हृदय में उनके प्रति श्रद्धा है उनके आदर्शों व सिद्धांतों के प्रति आस्था किंतु बापू की इस लोकप्रियता का नेता अनुचित लाभ उठा रहे हैं। उनके लिए बापू एक ब्रांड हैं। ऐसा ब्रांड, मार्केट में जिसकी साख है। क्योंकि साख है, इसलिए उसे कैश करना वे अपना धर्म समझते हैं। निहित स्वार्थ व दूषित राजनीति के अनुरूप वे बापू के आदर्शों व सिद्धांतों को जैसा चाहे उसी रूप में परिभाषित कर रहे हैं केवल आम जन को सम्मोहित करने के लिए बापू की दुहाई देते हैं, उनके आदर्श व सिद्धांतों की दुहाई देते हैं, उनके लिए बापू की बस यही उपयोगिता है। यथार्थ में बापू की हत्या किसी गोड़से ने नहीं की थी। इसी दूषित राजनीति ने की थी और अब स्वार्थ-पूर्ति के लिए इसी राजनीति ने बापू की आत्मा को कैद कर रखा है।

भूमिका

बापू का मैं सम्मान करता हूँ, स्नेह करता हूँ। जब कभी बापू का अपमान करते देखता हूँ, बापू के आदर्शों व सिद्धांतों की खिल्ली उड़ते देखता हूँ, तो हृदय में वेदना होती है और वही वेदना व्यंग्य के रूप में अभिव्यक्ति हो जाती है। यह व्यंग्य-नाटकविशेष रूप से राजनीति में बापू के नाम के दुरुपयोग और उनके आदर्श व सिद्धातों के दोहन पर आधारित है। वर्ष 2000 के आसपास शाकाहार व खादी प्रमोशन से संबंधित दो अलग-अलग फैशन शो दिल्ली में आयोजित किए गए। उनमें बापू के शाकाहार सिद्धांत और खादी आंदोलन का जिस विद्रूपता के साथ प्रदर्शन किया गया है, वह असहनीय था। मैंने उन दोनों फैशन शो को लेकर दो व्यंग्य-लेख लिखे। वरिष्ठ-कवि श्रद्धेय अशोक चक्रधर ने सब टी.वी. के ‘वाहवाह’ कार्यक्रम में फैशन शो से संबंधित उस व्यंग्य-लेख का पाठ करने का अवसर प्रदान किया। दर्शकों ने व्यंग्य काफी सराहा। उसके विभिन्न काव्यगोष्ठियों में भी उसका पाठ किया। श्रोताओं ने पसंद किया।

एक दिन मन में विचार आया कि बापू पर आधारित सभी व्यंग्य-लेखों का क्यों न नाट्य रूपांतरण किया जाए। मैंने अपनी जिज्ञासा डॉ. कमल किशोर गोयनका जी के समक्ष प्रस्तुत की। व्यंग्य पढ़ने के बाद उन्होंने मेरे प्रस्ताव की सराहना की और उनसे प्रेरणा प्राप्त कर मैंने ‘बापू कैद में’ नामक इस नाटक की रचना करने का प्रयास किया। व्यंग्य लिखते-लिखते नाटक लिखने का यह मेरा प्रथम प्रयास था। प्रथम प्रयास होने के कारण मैं हीन भावना से ग्रस्त था। नकारात्मक भावना लेकर मैं एन.एस.डी. में गया और उनसे नाटक परक टिप्पणी करने का आग्रह किया लगभग एक सप्ताह बाद उनकी टिप्पणी थी, ‘‘नाटक पठनीय है, दिलचस्प है। मैं इस नाटक का मंचन करना पसंद करूँगा।’’

मैं आभारी हूँ उन सभी महानुभावों का, जिन्होंने व्यंग्य-लेखन के साथ-साथ नाटक-लिखने के लिए मुझे प्रेरित किया, आशीर्वाद दिया आभारी मित्र चंडीदत्त शुक्ल और संजीव स्नेही का भी हूँ, समय-समय पर जिनसे मुझे बहुमूल्य सुझाव प्राप्त होते रहे हैं।

राजेन्द्र त्यागी

बापू कैद में


प्रमुख पात्र

बापू : महात्मा गांधी
मुन्नालाल : बापू का शिष्य
आवाज व छाया : नाटक के सूत्रधार मुन्नालाल की रूह गृहमंत्री
नेता : विभिन्न पोशाकों में
एसपीजी कमांडो व पुलिस : सुरक्षाकर्मी
भजन मंडली
मॉडल : खादी व शाकाहार प्रमोशन फैशन शो
महंत चरणदास : शाकाहार प्रमोशन फैशन शो के आयोजक
शर्मा जी : टिकट के दावेदार
सिंह साहब : टिकट के दावेदार
दलाल साहब : टिकट के दावेदार
चौधरी साहब : आत्म-परिचय समिति के अध्यक्ष
क्लर्क : आत्म-परिचय समिति का क्लर्क
मेहता साहब : आत्म-परिचय समिति के सदस्य
पांडे साहब : आत्म-परिचय समिति के सदस्य
उपाध्याय साहब : आत्म-परिचय समिति के सदस्य
अध्यक्ष : पार्टी अध्यक्ष
राय साहब : पार्टी महासचिव
अग्रवाल : पार्टी कार्यकारिणी के सदस्य
सिंह साहब : पार्टी कार्यकारिणी के सदस्य
ओझा साहब : पार्टी कार्यकारिणी के सदस्य
सिपाही : राजपथ पर
थानेदार
हवलदार : रामसिंह

भाग एक


दृश्य एक


(दो अक्तूबर, प्रातः सात बजे, गांधी समाधि, राजघाट। समाधि झाड़-पोंछकर चमका दी गई है। रंग-बिरंगे विभिन्न प्रकारके फूलों से सजाया गया है। समाधि के मध्य में एक धूप प्रज्वलित है। मेज पर गुलाब की पंखुड़ियों का ढेर सजा है। हलकी-हलकी ठंडी हवा चल रही है। वातावरण शांत है, मगर रह-रहकर चिड़ियों के चहचहाने की आवाज थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद शांति भंग कर रही है। समूचा राजघाट परिसर पुलिसकर्मियों से घिरा है। कुछ ही अंतराल के बाद लोगों का आना शुरु हो जाता है। प्रथम साजिंदों के साथ भजन-गायकों की मंडली प्रार्थना सभा में प्रवेश करती है। बापू के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तोरे कहिए...’ की स्वरलहरी हवा में गूँजने लगती है। धीरे-धीरे एसपीजी कमांडो की तादाद में वृद्धि होती है और इसी के साथ शुरू हो जाता है। पंक्तिबद्ध नेता समाधि की परिक्रमा करते हैं और गुलाब की पंखुड़ियों से बापू को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। नेपथ्य से अट्टास के साथ आवाज गूजँती हैं :)
आवाज : आहा हाऽऽऽ ! देश के कर्णधारों, बापू के कथित भक्तो, तुम किसे पुष्पांजलि अर्पित कर रहे हो ? बापू तो यहाँ हैं ही नहीं, आहाऽऽऽ...!


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