आध्यात्मिक >> कठोपनिषद् कठोपनिषद्गीताप्रेस
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कठोपनिषद् कृष्णयजुर्वेद की कठशाखा के अन्तर्गत है। इसमें यम और नाचिकेता के संवादरूप से ब्रह्मविद्या का बड़ा विशद वर्णन किया गया है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कठोपनिषद् कृष्णयजुर्वेद की कठशाखा के अन्तर्गत है। इसमें यम और नाचिकेता
के संवादरूप से ब्रह्मविद्या का बड़ा विशद वर्णन किया गया है। इसकी
वर्णनशैली बड़ी ही सुबोध और सरल है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी इसके कई
मन्त्रों का कहीं शब्दतः और कहीं अर्थतः उल्लेख है। इसमें अन्य
उपनिषदों की भाँति जहाँ तत्त्वाज्ञान का गम्भीर विवेचन है, वहां नचिकेता
का चरित्र पाठक के सामने एक अनुपम आदर्श की उपस्थिति करता है।
जब वे देखते है कि पिताजी जीर्ण-शीर्ण गौएं तो ब्राह्मणों को दान को दान कर रहे है और दूध देने वाली पुष्ट गायें मेरे लिए रख छोड़ी है तो बाल्यावस्था होने पर भी उनकी पितृभक्ति उन्हें चुप नहीं रहने देती और वे बालसुलभ चापल्य प्रदर्शित करते हुए वाजश्रवासे पूछ बैठते हैं ‘-तत कस्मै मां दास्यसि’ (पिताजी आप मुझे किसको देंगे ?) उनका यह प्रश्न ठीक ही था, क्योंकि विश्वजित् यागमें सर्वस्वदान किया जाता है और ऐसे सत्यपुत्र को दान किये बिना वह पूर्ण नहीं हो सकता था। वस्तुतः सर्वदान तो तभी हो सकता है जब कोई वस्तु अपनी न रहे और यहां अपने पुत्र के मोह से ही ब्राह्मणों को निकम्मी और निरर्थक गौएँ दी जा रही थीं; अतः इस मोह से पिता का उद्धार करना उनके लिये उचित ही था।
इसी तरह कई बार पूछने पर जब वाजश्रवा ने खीझकर कहा कि मैं तुझे मृत्यु को दूँगा तो उन्होंने यह जानकर भी कि पिताजी क्रोधवश ऐसा कह गये हैं, उनके कथन की उपेक्षा नहीं की।
जब वे देखते है कि पिताजी जीर्ण-शीर्ण गौएं तो ब्राह्मणों को दान को दान कर रहे है और दूध देने वाली पुष्ट गायें मेरे लिए रख छोड़ी है तो बाल्यावस्था होने पर भी उनकी पितृभक्ति उन्हें चुप नहीं रहने देती और वे बालसुलभ चापल्य प्रदर्शित करते हुए वाजश्रवासे पूछ बैठते हैं ‘-तत कस्मै मां दास्यसि’ (पिताजी आप मुझे किसको देंगे ?) उनका यह प्रश्न ठीक ही था, क्योंकि विश्वजित् यागमें सर्वस्वदान किया जाता है और ऐसे सत्यपुत्र को दान किये बिना वह पूर्ण नहीं हो सकता था। वस्तुतः सर्वदान तो तभी हो सकता है जब कोई वस्तु अपनी न रहे और यहां अपने पुत्र के मोह से ही ब्राह्मणों को निकम्मी और निरर्थक गौएँ दी जा रही थीं; अतः इस मोह से पिता का उद्धार करना उनके लिये उचित ही था।
इसी तरह कई बार पूछने पर जब वाजश्रवा ने खीझकर कहा कि मैं तुझे मृत्यु को दूँगा तो उन्होंने यह जानकर भी कि पिताजी क्रोधवश ऐसा कह गये हैं, उनके कथन की उपेक्षा नहीं की।
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