अतिरिक्त >> बुधिया का सपना बुधिया का सपनासतीश उपाध्याय
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एक गांव था धरमपुर, इस गांव में रामरतन का परिवार रहता था। रामरतन का जितना मान था, उतना ही मान उसकी घरवाली बुधिया का भी था।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बुधिया का सपना
एक गांव था धरमपुर, इस गांव में रामरतन का परिवार रहता था। रामरतन का
जितना मान था, उतना ही मान उसकी घरवाली बुधिया का भी था। रामरतन एक मेहनती
किसान था। वह जब खेत में हल चलाने जाता, तब बुधिया भी जाती। दोनों खूब
मेहनत करते। हर साल उनकी फसल लहलहा उठती। फसल देखकर गांव के मुखिया की
छाती पर सांप लोट जाता।
बुधिया की एक लड़की थी। उसका नाम था मानकुंवर। बुधिया को बस एक ही गम सताता रहता था। मानकुंवर पढ़-लिखकर काबिल बन जाये, उसको मालूम था कि लड़कियों की पढ़ाई भी जरूरी है। पढ़ाई से समझ बढ़ती है, मान भी बढ़ता है।
गांव के सयाने लोगों को बुधिया की यह बात बहुत बुरी लगती। वे कहते-लड़कियों को घर का काम काज सिखाओ वह बरतन मांजे, झाड़ू लगाये। घर की सफाई करे। गाय-बकरी चराये। यही काम काज आगे काम आता है।
बुधिया गांव के लोगों को समझाती। फिर अपनी बात कहती-मैं अपनी बेटी को गांव के बाहर शहर में ऊँची शिक्षा लेने भेजूंगी। उसको खूब पढ़ाऊंगी। धरमपुर गाँव में कोई भी लड़की कक्षा आठ के आगे नहीं पढ़ी है।
बुधिया की एक लड़की थी। उसका नाम था मानकुंवर। बुधिया को बस एक ही गम सताता रहता था। मानकुंवर पढ़-लिखकर काबिल बन जाये, उसको मालूम था कि लड़कियों की पढ़ाई भी जरूरी है। पढ़ाई से समझ बढ़ती है, मान भी बढ़ता है।
गांव के सयाने लोगों को बुधिया की यह बात बहुत बुरी लगती। वे कहते-लड़कियों को घर का काम काज सिखाओ वह बरतन मांजे, झाड़ू लगाये। घर की सफाई करे। गाय-बकरी चराये। यही काम काज आगे काम आता है।
बुधिया गांव के लोगों को समझाती। फिर अपनी बात कहती-मैं अपनी बेटी को गांव के बाहर शहर में ऊँची शिक्षा लेने भेजूंगी। उसको खूब पढ़ाऊंगी। धरमपुर गाँव में कोई भी लड़की कक्षा आठ के आगे नहीं पढ़ी है।
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