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लखमी

धूमकेतु

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :19
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6156
आईएसबीएन :81-237-1557-7

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लखमी-पूंजा की स्त्री। खूब तगडी, समझदार और घर की देख-रेख करने वाली । व्यवहार में चतुर । पैसों की पूरी निगरानी रखती।

Lakhmi A Hindi Book by Dhoomketu

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लखमी

लखमी-पूंजा की स्त्री। खूब तगडी, समझदार और घर की देख-रेख करने वाली । व्यवहार में चतुर । पैसों की पूरी निगरानी रखती। लखमी के पेट से दो लडकियाँ जन्मी। बडी-कड़वी, छोटी-भनकी। कडवी का संबंध काना से हुआ। काना के घर की हालत अच्छी नहीं थीं। ब्याह का खर्च नहीं कर सकता था।

 फिर भी लखमी ने संबंध नहीं तोडा। खुद आगे होकर काना का ब्याह कड़वी से करवाया। दोनों का घर बसाया। पूंजा तो देखता रहा । घर में लखमी का ही कहना चलता, पर पूंजा उससे सुखी था। लखमी होशियार तो थी ही, रूपवती भी थी। लखमी पूंजा की छोटी-सी आमदनी में घर चलाती।

पूंजा भले ही उधार ले, पर खुद किफायत करती। पांच पैसे बचाती और कड़ी निगरानी रखती।

एक दिन पूंजा के घर मेहमान आये। वशराम, मेघा, सतापर वाला कालिया वगैरह। पूंजा को मेहमान भार न लगते। लखमी का प्रबंध ही ऐसा था। पूंजा मेहमानों में बैठा गपशप कर रहा था। तीज-त्यौहार के लिए सूद पर रुपया उधार देता। उसने पूंजा को भी सूद पर रुपया दिया था आज मोहलत के मुताबिक लेने आया था।

पूंजा के हाथ-पाँव फूल गये। घर में मेहमान थे और जेब खाली थी। नेमचन्द्र का उधार कैसे चुकेगा ? पूरे 45 रुपयों का सवाल था। पूंजा आगा-पीछा करने लगा। मन में हुआ कि आज इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। पर लखमी उसकी मदद को आयी। हंसकर नेमचन्द्र की अगवानी की और उसके आगे पैंतालीस सिक्के रख दिये। पूंजा देखते ही रह गया। कहने लगा, ‘‘लखमी, तूने घर की नाक रख ली।


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