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अभिज्ञान शाकुन्तल

कालिदास

प्रकाशक : राजपाल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6162
आईएसबीएन :9788170287735

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विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...

 

भूमिका


संस्कृत साहित्य में कालिदास का स्थान अप्रतिम है। कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के 'नवरत्नों' में से एक थे। प्राचीन कालीन सम्राटों का मन्त्रिमण्डल उनका रत्नमण्डल कहलाता था। उस समय मन्त्रियों की गणना रत्नों के समान की जाती थी। विक्रमादित्य के नवरत्नों में कौन अधिक तेजवान, ओजस्वी और वर्चस्वी था यह कह पाना कठिन है। जिस प्रकार कालिदास का  संस्कृत-साहित्य में अप्रतिम स्थान है उसी प्रकार विक्रमादित्य के मन्त्रिमण्डल में भी उनका  स्थान अप्रतिम था।

कालिदास की कथा-कृतियों के बारे में संस्कृत-साहित्य में बहुत कुछ कहा गया है। कालिदास की कृतियों से परिचित होने के लिए हम उनका उल्लेख करना परम आवश्यक मानते हैं। संस्कृत के विद्वानों में यह श्लोक प्रसिद्ध है-

काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्यं शकुन्तला।
तत्रापि च चतुर्थोऽङ्कस्तत्र श्लोक चतुष्टयम्।।


इसका अर्थ है-काव्य के जितने भी प्रकार हैं उनमें नाटक विशेष सुन्दर होता है। नाटकों में भी काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से अभिज्ञान शाकुन्तलम् का नाम सबसे ऊपर है। अभिज्ञान शाकुन्तलम् में भी उसका चतुर्थ अंक और इस अंक में भी चौथा श्लोक तो बहुत ही रमणीय है।
इसी प्रकार एक अन्य विद्वान् ने कालिदास के विषय में कहा है-

कालिदासगिरां सारं कालिदाससरस्वती।
चतुर्मुखोऽथवा ब्रह्मा विदुर्नान्ये तु मादृश:।।


अर्थात्-कालिदास की वाणी के सार को आज तक केवल तीन व्यक्तियों ने समझा है, एक तो  विधाता ब्रह्मा ने, दूसरे वाग्देवी सरस्वती ने और तीसरे स्वयं कालिदास ने। मुझ जैसा तो उनको ठीक से समझने में असमर्थ है।
इतना ही नहीं, इससे भी बढ़कर किसी प्राचीन संस्कृत के कवि ने कहा है-

कालिदास कविता नवं वय: माहिषं दधि सशर्करं पय:।
एणमांसमबला सुकोमला संभवन्तु मम जन्म-जन्मनि।।


इसका अभिप्राय है-यदि प्रत्येक जन्म में मुझे कालिदास की कविता, नई चढ़ती हुई जवानी, भैंस के दूध का जमा हुआ दही, शक्कर पड़ा हुआ दूध, हरिण का मांस और कोमल नवेली युवती प्राप्त होती रहें तो इस भवचक्र में जितनी बार भी जन्म लेना पड़े, मुझे वह स्वीकार है।

भारतीय आत्मा नित्य मोक्ष के लिए छटपटाती है किन्तु कवि कहता है कि कालिदास की कविता आदि यदि उसे मिलते रहे तो उसे मोक्ष की भी कामना नहीं है।

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