नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल अभिज्ञान शाकुन्तलकालिदास
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विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...
दोनों ऋषि० : (हर्ष व्यक्त करते हुए) आप वही युक्तियुक्त कार्य कर रहे हैं जो आपके पूर्वज करते आये हैं। आश्रम की रक्षा करना तो आपका धर्म ही है। यह बात सभी भली-भांति जानते हैं कि शरण में आये हुए को अभयदान देने में पुरुवंशी कभी पीछे नहीं हटते।
राजा : (प्रणाम करके) आप लोग आगे चलिए, मैं भी आप लोगों का अनुगमन करने वाला हूं।
दोनों : (आशीर्वाद देते हुए) आपकी विजय हो।
[दोनों जाते हैं।]
राजा : माढव्य! क्या शकुन्तला के दर्शन करने की कुछ इच्छा है?
माढव्य : पहले जब आपने कहा था तब तो इतनी तीव्र इच्छा थी कि मानो बाढ़ ही आ गई हो। किन्तु अब जब राक्षसों के उपद्रव की बात सुनी है तो वह इच्छा अब बूंद भर भी नहीं रह गई है।
राजा : अरे, डरते क्यों हो? तुमको हम अपने समीप ही रखेंगे।
विदूषक : हां, तब तो राक्षसों से मैं सुरशित हो गया हूं।
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