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सरला ने कहा

जमुना प्रसाद कसार

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6174
आईएसबीएन :81-237-3863-3

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लखनपुर एक छोटा सा गांव है। शहर से बहुत दूर। कुल साठ घरों की बस्ती है। यहां केवल एक प्राथमिक शाला है।

Sarla Ne Kaha A Hindi Book by Jamuna Prasad Kasar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

सरला ने कहा


लखनपुर एक छोटा सा गांव है। शहर से बहुत दूर। कुल साठ घरों की बस्ती है। यहां केवल एक प्राथमिक शाला है। वह भी अभी दो साल पहले खुली है शाला में एक ही शिक्षक है। गांव के दो चार लड़के ही पांचवी तक पढ़े हैं। इसके लिए भी उन्हें दूसरे गांव जाना पड़ा था। सयाने लोगों में यहां कोई पढ़ा-लिखा नहीं हैं।

चुनाव का समय आया। अचानक सरकार के काम में तेजी आ गई। वैसे तो इस गांव की सुध अभी तक किसी ने नहीं ली थी। गांव घने जंगल में था। गांव को शहर से जोड़ने वाली कोई सड़क भी नहीं थी। राम जाने यहां एक नेत्र शिविर का आयोजन कैसे हो गया ? सरकार के सब लोग एक दम काम में लग गए।

पर सरकार जानती है कि यह काम अकेले उसके बस का नहीं है। इसलिए गांव के युवकों को सहायता के लिये बुलाया गया। गांव के सब युवक अपने-अपने घरों में दुबक गए।

 शिविर में काम करने के लिए कोई आगे नहीं आया। काशी का बेटा रतनू सामने आया। उसने अपना नाम लिखा दिया। वह कक्षा पांचवीं तक पढ़ा था। सरकारी आदमी ने रतनू को काम समझा दिया। दूसरे दिन वह काम में लग गया। शाला की छुट्टी कर दी गई। अब शाला अस्पताल बन गई। डॉक्टरों का दल वहाँ पहुँचा। उनमें एक डाक्टर देवेश भी थे। उन्होंने देखा कि रतनू दौड़कर खूब काम कर रहा है। अब डॉ. देवेश अपना सब काम उसी से करवाने लगे।

रतनू को शिविर में ही भोजन मिलने लगा। उसने अरहर की दाल का स्वाद भी लिया। दूसरे ही दिन वह अपनी छोटी बहन सरला को भी अपने साथ ले आया। वह सरला को भी वहां भोजन कराना चाहता था। उस दिन सरला ने दोनों समय का भोजन शिविर में ही किया।


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