अतिरिक्त >> हैसियत हैसियतपरदेशीराम वर्मा
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आमगांव ही अब रामसिंह का अपना गांव है। गया से उनके पिताजी यहां आए थे। यहीं रामसिंह का जन्म हुआ। आमगांव के तालाबों में तैरकर वह बड़ा हुआ। आम चूसकर तगड़ा बना।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हैसियत
आमगांव ही अब रामसिंह का अपना गांव है। गया से उनके पिताजी यहां आए थे।
यहीं रामसिंह का जन्म हुआ। आमगांव के तालाबों में तैरकर वह बड़ा हुआ। आम
चूसकर तगड़ा बना। यहां कि गलियों में खेल कूंदकर जवान हुआ। अब तो उम्र
काफी हो गई। आमगांव तब जंगल के बीच बसा हुआ था। आज तो चारों ओर के जंगल कट
गए।
आमगांव में उसके पिता ने दस एकड़ जमीन ली थी। कौड़ियों के मोल मिली थी जमीन। लेकिन आज चारों ओर बस्तियां बन रही हैं। आमगांव की जमीन कीमती हो गई है। रामसिंह जमीन बेचकर कुछ दूसरा रोजगार करना चाहता था। लेकिन उसके किसान पिता ने मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि मकान के लिए ले लो हमसे। रख लो आधा एकड़ जमीन। मगर खेत तो खेत ही रहेंगे। अनाज देने वाली जमीन पर दूसरा काम नहीं करना है। धरती माता है। यह हमें अन्न देती है। मकान रहने भर को बनाओ। बेचने के लिए मत बनाओ।
रामसिंह अपने पिता की बात काट नहीं पाता। रामसिंह है तो बड़ा बाबू। मगर उसकी बात दफ्तर में चलती है। घर में वह बूढ़े बाप के आगे बोल भी नहीं पाता। हालांकि उसके बच्चे भी जवान हो गए हैं। रामसिंह खुद पचास साल का है। मगर उसने सत्तर वर्ष के बाबू के आगे उसकी एक नहीं चलती।
बाबू किसान है। मेहनत के बल पर जीने वाले। साहस, धीरज और परिश्रम से भरे हुए। चापलूसी, बेगारी से कोसों दूर। इसलिए अपने पचास वर्ष के बेटे रामसिंह को भी डांट देते हैं। गलत बात उन्हें पसंद नहीं। रामसिंह ने सदा अपने पिता की बात रखी।
आमगांव में उसके पिता ने दस एकड़ जमीन ली थी। कौड़ियों के मोल मिली थी जमीन। लेकिन आज चारों ओर बस्तियां बन रही हैं। आमगांव की जमीन कीमती हो गई है। रामसिंह जमीन बेचकर कुछ दूसरा रोजगार करना चाहता था। लेकिन उसके किसान पिता ने मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि मकान के लिए ले लो हमसे। रख लो आधा एकड़ जमीन। मगर खेत तो खेत ही रहेंगे। अनाज देने वाली जमीन पर दूसरा काम नहीं करना है। धरती माता है। यह हमें अन्न देती है। मकान रहने भर को बनाओ। बेचने के लिए मत बनाओ।
रामसिंह अपने पिता की बात काट नहीं पाता। रामसिंह है तो बड़ा बाबू। मगर उसकी बात दफ्तर में चलती है। घर में वह बूढ़े बाप के आगे बोल भी नहीं पाता। हालांकि उसके बच्चे भी जवान हो गए हैं। रामसिंह खुद पचास साल का है। मगर उसने सत्तर वर्ष के बाबू के आगे उसकी एक नहीं चलती।
बाबू किसान है। मेहनत के बल पर जीने वाले। साहस, धीरज और परिश्रम से भरे हुए। चापलूसी, बेगारी से कोसों दूर। इसलिए अपने पचास वर्ष के बेटे रामसिंह को भी डांट देते हैं। गलत बात उन्हें पसंद नहीं। रामसिंह ने सदा अपने पिता की बात रखी।
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