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मनोरंजक कथाएँ >> मास्टर जी

मास्टर जी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6183
आईएसबीएन :9788170287803

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रवीन्द्रनाथ की लेखनी से निकली एक और कहानी मास्टर जी ...

Master Ji -A Hindi Book by Ravindranath Thakur

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मास्टर जी

 

(छात्र का नाम मधुसूदन। उसे मथुरानन्द मास्टर ट्यूशन पढ़ा रहे हैं। कमरे में मधुसूदन के पिता अजय बाबू का प्रवेश)
अजय बाबू : कहिये मथुरानन्द बाबू, मधुसूदन की पढ़ाई कैसी चल रही है ?
मथुरानंद : मधुसूदन शरारती तो बहुत है, पर पढ़ाई-लिखाई में काफी तेज है। कोई बात बार-बार बतानी नहीं पड़ती। बस एक बार पढ़ा दो, वह भूलता नहीं।
अजय बाबू : अच्छा ! तो मैं भी जरा देखूं कि वह कितना होशियार है।
मथुरानंद : देखिये। खुशी से देखिये।
मधुसूदन : (मन ही मन में) कल मास्टर जी ने वह धुनाई की थी कि हड्डियां आज भी दु:ख रही हैं। आज लेता हूं बदला। इनकी भी छुट्टी न करवा दी तो मेरा भी नाम नहीं।
अजय बाबू : क्यों मधु, याद है सब ?
मधुसूदन : जो कुछ मास्टर जी ने पढ़ाया, सब याद है।
अजय बाबू : अच्छा, तो बता कि उद्भिद किसे कहते हैं ?
मधुसूदन : जो उगे, यानी मिट्टी को फोड़कर जो उसमें से ऊपर निकले।
अजय बाबू : कोई उदाहरण इसका ?
मधुसूदन : केंचुआ।
मथुरानंद : (गुस्से में आंखें तरेरकर) क्यों रे, क्या कहा ?
अजय बाबू : जरा ठहरिये मास्टर जी, अभी आप कुछ न बोलिये।
(मधुसूदन से) तुमने कविता पढ़ी है। यह बताओ कि वन में क्या खिलता है ?
मधुसूदन : कांटा।
(मथुरानंद बेंत उठाते हैं)
क्यों गुरुजी, मारते क्यों हैं ? मैं कोई झूठ बोलता हूं ?
अजय बाबू : अच्छा, सिराजुद्दौला को किसने मिटाया ? इतिहास क्या कहता है?

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