अतिरिक्त >> सही कदम सही कदमशिवमंगल सिंह
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प्रस्तुत है बालोपयोगी कहानी सही कदम ....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सही कदम
राघव के पापा का तबादला काफी दूर हो गया था। उसके दादा जी गांव में निपट
अकेले रहते थे। इसलिए राघव को उनकी देख-रेख के लिए उनके पास रुकना पड़ा।
उसने गांव के मिडिल स्कूल में दाखिला ले लिया। वह शहर के कॉन्वेन्ट स्कूल
में पढ़ा था। इसलिए गांव के स्कूल की व्यवस्था देख वह सोच में पड़ गया। वह
अंदर ही अंदर झल्ला पड़ा। यह भी कोई स्कूल है ? अरे, बैठने के लिए टेबिल
कुर्सी तो भाड़ में गई, टाट पट्टी तक नहीं है। अनुशासन नाम की चीज तो
स्कूल भर में नहीं । लड़के सारे दिन धमा-चौकड़ी मचाते। सच मायनों में तो
यह पाठशाला नहीं, ऊधमशाला है ! ऊधमशाला !
अनुशासन में रहना बच्चे कोई पेट से तो सीख कर नहीं आते। उन्हें स्कूल में ही पढ़ाया और सिखाया जाता है। लेकिन इस स्कूल में इस बात का ही रोना था, कि जो अनुशासन कर्त्तव्य-बोध एवं सफाई से रहना सिखाते हैं उन्हें स्वयं अपना होश नहीं था। वे स्वयं ही गैर अनुशासित रहते हैं। कक्षाओं में कुर्सियों पर आड़े तिरछे बैठते हैं कभी-कभी तो कक्षा में बेंच डालकर उसी पर लेट तक जाते हैं। सारे दिन में कभी एकाध पीरियड ले लिया तो ले लिया, नहीं तो वह भी नहीं।
बच्चों के प्रति यह उदासीन रवैया ऱाघव को बहुत खला। उसने एक दिन कुछ लड़कों से सलाह मशविरा किया। वे सभी राघव की बात मान गए। वे सभी कक्षा में बैठकर स्वयं जब जिस विषय का पीरियड होता पढ़ा करते। समझ न आने पर संबंधित शिक्षक के पास जाकर पूछ लिया करते। इतने पर भी शिक्षकों ने कोई ध्यान नहीं दिया। बल्कि कभी-कभी पूछने वाले बच्चों को झिड़की भी दे देते। परन्तु उन लोगों ने अपना क्रम जारी रखा. उस दिन राघव गणित के सर से पूछने गया तो उन्होंने उसे डाँट दिया, ‘‘चलो, जाकर कक्षा मैं बैठो। वहाँ आऊँ तब पूछना।’’
अनुशासन में रहना बच्चे कोई पेट से तो सीख कर नहीं आते। उन्हें स्कूल में ही पढ़ाया और सिखाया जाता है। लेकिन इस स्कूल में इस बात का ही रोना था, कि जो अनुशासन कर्त्तव्य-बोध एवं सफाई से रहना सिखाते हैं उन्हें स्वयं अपना होश नहीं था। वे स्वयं ही गैर अनुशासित रहते हैं। कक्षाओं में कुर्सियों पर आड़े तिरछे बैठते हैं कभी-कभी तो कक्षा में बेंच डालकर उसी पर लेट तक जाते हैं। सारे दिन में कभी एकाध पीरियड ले लिया तो ले लिया, नहीं तो वह भी नहीं।
बच्चों के प्रति यह उदासीन रवैया ऱाघव को बहुत खला। उसने एक दिन कुछ लड़कों से सलाह मशविरा किया। वे सभी राघव की बात मान गए। वे सभी कक्षा में बैठकर स्वयं जब जिस विषय का पीरियड होता पढ़ा करते। समझ न आने पर संबंधित शिक्षक के पास जाकर पूछ लिया करते। इतने पर भी शिक्षकों ने कोई ध्यान नहीं दिया। बल्कि कभी-कभी पूछने वाले बच्चों को झिड़की भी दे देते। परन्तु उन लोगों ने अपना क्रम जारी रखा. उस दिन राघव गणित के सर से पूछने गया तो उन्होंने उसे डाँट दिया, ‘‘चलो, जाकर कक्षा मैं बैठो। वहाँ आऊँ तब पूछना।’’
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