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नारी स्वर

ज्ञान चन्द्र ज्ञानी

प्रकाशक : आराधना ब्रदर्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6191
आईएसबीएन :00000

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शक्ति दो मां तुम मुझे, अभिव्यक्ति दो माँ शारदे इस जगत से माता मेरी, नारी जगत को तार दे।

Nari Swar A Hindi Book Gyan Chandra

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नारी स्वर


शक्ति दो मां तुम मुझे,
अभिव्यक्ति दो माँ शारदे
इस जगत से माता मेरी, नारी
जगत को तार दे।
उद्धार जैसे हो सके, वैसे भरो
माँ ‘‘ज्ञान’’
यह समाज क्यों पुरुष प्रधान,
नारी है इसका परिधान ?
*
श्वेत हंस में चढ़कर देखो
अपनी नारी की दुर्गति,
इस समाज में नारी के प्रति
शोषण की कैसी दुर्मति,
आओ केशव फिर नारी की
खिंचती सारी पर दो ध्यान,
ये समाज क्यों पुरुष प्रधान
नारी है इसका परिधान ?
*
जिस धरती से हम पैदा हैं
उसको मिट्टी मान रहे,
जिसने सबको सृजित किया
पैरों की जूती जान रहे,
प्राण वायु को हवा समझ
कर रहे प्रकृति का अपमान
ये समाज क्यों पुरुष प्रधान
नारी है इसका परिधान ?
सीताराम शब्द में अंकित
पहले नारी विश्व प्रधान,
राधाकृष्ण यही कहते हैं
नारी जग में प्रथम विधान,
खुद भगवान् व्यक्त करता है
सकल सृष्टि से नारीवान,
ये समाज क्यों पुरुष प्रधान
नारी है इसका परिधान ?
*
सबने स्तन पान किया है
सबको पैरों पर खड़ा किया है
पालपोष कर बड़ा किया है
प्रथम गुरु का काम किया है
गुरु से बढ़कर इस दुनिया में,
बड़ा नहीं जग का भगवान,
ये समाज क्यों पुरुष प्रधान
नारी है इसका परिधान ?

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