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वाणी का सदुपयोग

गायत्री तिवारी

प्रकाशक : बुक वर्ल्ड प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6192
आईएसबीएन :00000

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वाणी हमारी मित्र भी है और शत्रु भी वो कैसे पढ़िये इस कहानी में .....

Vani Ka Sadupyog -A Hindi Book by Gayatri Tiwari

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

वाणी का सदुपयोग


एक गाँव में तीन दोस्त रहते थे। जिनका नाम राम, श्याम, और मोहन था। तीनों बचपन से एक ही कक्षा में पढ़ते थे। पढ़ने में तीनों होशियार थे। अतः अगली कक्षा में साथ ही पास होकर पहुँच जाते। इसीलिये दोस्ती और भी गहरी हो गई। किन्तु तीनों के घर का वातावरण अलग-अलग था। राम के पिता अनाज का व्यापार करते थे। मोहन के पिता की शराब की दुकान थी। अंग्रेजी तथा देशी दोनों तरह की शराब का ठेका इस गाँव का प्रायः उन्हीं के पास होता। पैसों की तीनों दोस्तों में से किसी के पास कमी न थी। प्रायः तीनों मिल-जुल कर खर्च करते। खाते-पीते तथा खेलने-कूदने में मस्त रहते। पढ़ने के समय मन लगाकर पढ़ते और अच्छे नम्बरों से पास होते।

केवल दूसरों के साथ व्यवहार करते समय कुछ अलग-अलग ढंग से व्यवहार करते। किन्तु लोग बचपन समझकर टाल जाते। धीरे-धीरे वे तीनों बड़े हो गये उन्होंने दसवीं पास कर ली। और गर्मी की छुट्टी में बाहर घूमने जाने का विचार किया। माँ बाप से पैसे लेकर वे दूर-दूर तक तीर्थ स्थान देखने निकल पड़े। एक दिन घूमते-घूमते उन्हें अंधेरा हो गया। पानी बरसने लगा। और ओले पड़ने लगे। वे भागते-भागते एक झोपड़ी में घुस गए वहाँ एक सुशील, बुद्धिमान स्त्री अपनी बेटी के साथ रहती थी। रामू ने उससे कहा ऐ माता मैं राह भटक गया हूँ और बाहर अंधेरा है। बड़े-बड़े ओले पड़ रहे हैं। ऐसे में कहीं सुरक्षित जगह जाना कठिन है, क्या आप रात्रि भर के लिये थोड़ी जगह दे सकती हैं ? स्त्री ने उत्तर दिया वह सामने एक मकान है जिसमें नीचे पशु बांधती हूँ ऊपर ठहरने को एक कमरा है तुम आराम से रात्रिभर ठहर सकते हो। हाँ और खाने को ये चार रोटी साग तथा एक लोटे  में पानी भर लेते जाओ। रामू वहाँ जाकर आराम करने लगा भोजन उसने साथियों के साथ खाने के लिये रख दिया।


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