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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


लोग कहते हैं कि हमें मजदूरों का राज चाहिए। ठीक है। मैं भी उसे पसन्द करता हूँ। इग्लैंड में वहाँ की फौज को अपने लोगों पर गोली चलानी नहीं पड़ती। वहाँ तो अपने सिपाहियों को भी नहीं चलानी पड़ती। इधर हर रोज गोली चलानी पड़े, जब कि पुलिस हमारी, प्रधान मण्डल हमारा और फौज हमारी। फिर भी हमें अपने भाइयों पर गोली चलानी पड़े, इस प्रकार का राज लेने से क्या फायदा हुआ? यह तो बहुत बुरी और नुकसान देनेवाली बात है। इसलिए यह चीज हमें छोड़ देनी चाहिए। इसके लिए हमें लोगों को अच्छी तालीम देनी चाहिए। एक रोज हड़ताल कराने से कोई लीडरशिप कायम नहीं होती है। लीडरशिप आप भले ही ले लीजिए, लेकिन मुल्क का फायदा किस तरह से होगा, वह तो देखिए। आज हमारे पास न तो पूरा अनाज पैदा होता है, न हमारे पास पूरा कपड़ा है। जिन्दगी की जरूरियात की जितनी चीजें हैं, वे सब हमारे पास पूरी नहीं हैं। मकान बनाना हो तो उसके लिए लोहा चाहिए, वह नहीं मिलता, सीमेंट चाहिए तो वह भी नहीं मिलता। हमारी रेलवे की गाडियाँ टूट-फूट गई हैं। हर जगह पर देखो तो हमारा सारा साजो-सामान टूट-फूट गया है। हमने स्वराज्य तो पाया, लेकिन हमारे देश की अवस्था अभी बहुत कमजोर है, उसको हमें मजबूत बनाना है। वह बनाना हो, तो उसमें आप लोगों को हमारा साथ देना पड़ेगा। यदि आप कहे कि नहीं भई, तुम अच्छा राज नहीं करते हो। आप तो वैसा ही राज चलाते हो, जैसा परदेसी चलाते थे। तो हम आज ही छोड़ दें। तब आप यह बोझ उठाइए। लेकिन जैसा आप करते हैं, ऐसा हम हठ भी नहीं करेंगे। हम किसी भी सूरत में देश का बिगाड़ नहीं करेंगे। यदि आप बोझ न उठा सके, तो हम यह बोझ उठाएँगे, लेकिन उसमें आप हमारा साथ दीजिए।
आज प्रफुल्ल बाबू की कलकत्ता में हुकूमत है, तो इसके लिए आपको मगरूर होना चाहिए। आपको समझना चाहिए कि यह हमारा आदमी है, हम उनके पास आ-जा सकते हैं। पहले गवर्नमेंट हाउस में आप नहीं जा सकते थे। पहले जो हुकूमत करनेवाले थे, उसके पास तो आप जा ही नहीं सकते थे। आपको पुलिस के साथ अपना बरताव बदलना चाहिए। पिछली सरकार फौज से जो काम लेती थी, उस प्रकार का काम हमें नहीं लेना चाहिए। आज फौज हमारी है और उसको देख कर हमें मगरूर होना चाहिए। देश के सिपाही हमारे हैं, पुलिस हमारी है, उनपर हमें मगरूर होना चाहिए। उनको सिखाना चाहिए कि किस तरह से पुलिस का काम करना होता है। यह सब चीज, सारा पुराना ढंग, हमें बदलना पड़ेगा। पिछली गवर्नमेंट के साथ हमारी जो लड़ाई चलती थी, उसी चाल से अब हमें नहीं चलना है। नहीं तो हमारा सारा ढाँचा टूट जाएगा, और उससे किसी को कोई फायदा नहीं होगा।
हमें हिन्दुस्तान का राज बराबर ठीक तरह से चलाना हो, तो वह दो तरह से चल सकता है। एक तो जिस तरह गान्धी जी कहते हैं, इस तरह का राज, अर्थात् रामराज्य। तो रामराज्य में तो खुला दरवाजा रख के भी सो जाओ, तो कोई हर्ज नहीं। तब पुलिस की कोई जरूरत नहीं होगी। कोई दूसरों की चीज को लेने की इच्छा ही न करे, कोई किसी से मार-पीट न करे और सब एक दूसरे को भाई समझकर एक कुटुम्ब की मुआफिक रह सके, तब रामराज्य होगा। उसके आने में तो अभी बहुत देर है। अभी तो उसमें एक भी बात नहीं है। तो गान्धी जी के रास्ते पर हम चलने की पूरी कोशिश करें, वह तो ठीक है। लेकिन आज यह हालत नहीं है। आपने इधर कलकत्ता में 'डाइरेक्टएक्शन डे' भी तो एक रोज देखा था। वह आपको याद होगा। १६ अगस्त १९४६ को आप भूल तो नहीं गए होंगे। मैं नहीं समझता कि कलकत्ता में कभी उसे कोई भूल सकेगा। तो आज भी हमारी हालत ऐसी नहीं है कि हम कलकत्ता की उस चीज को भूल जाएँ। उस दिन कलकत्ता से आग की जो चिनगारी उड़ी, उसने सारे हिन्दुस्तान को जला दिया और वह अभी तक शान्त नहीं हुई। लोग कहते हैं कि यह पाकिस्तान क्यों बना? उसके बाद ये सब झगड़े-फसाद क्यों हुए? ये सब चीजें अगर हम खोल कर कहने के लिए बैठ जाएँ, तो उसमें से फिर और बुराइयाँ पैदा होंगी। इसलिए वह सब चीज हम अपने दिल में रखते हैं। हम बोलते तो नहीं लेकिन पूरी तरह समझते हैं कि यह किसकी जिम्मेवारी है। किसने कैसा और क्यों किया? ठीक है। जो कुछ हुआ, सो हमारी किस्मत से हुआ। लेकिन वह सब फिर न हो, उसके लिए हमें क्या करना है? उसके लिए मैंने कहा कि या तो आप गान्धी जी के रास्ते पर चलो और या फिर हमारी फौज मजबूत चाहिए, हमारी पुलिस मजबूत चाहिए और हमारे देश में एका होना चाहिए। अगर हम आपस में लड़ते रहेंगे तो फिर और भी ज्यादा खराबी होगी।

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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