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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


हमारी गवर्नमेंट का कल ही तो जन्म हुआ है। हमारी सरकार तो अभी चार महीने का बच्चा है। उसके ऊपर सब बोझ डालो, तो वह गिर जायगा। तो जितने हमारे लोग बुद्धिमान हैं, जिनके पास अनुभव है, उसका उपयोग भी हमें करना है। मुल्क के फायदे के लिए जितना और जहाँ तक हो सके, कोशिश करके उनको भी साथ लेना है। हमारी कोशिश तो यह है कि नेशनैलाइज करना सम्भव हो, तो हम वह भी करें। और वह न हो सके तो जितने और लोग अनुभववाले हैं, उनको साथ लेकर जहाँ तक उनको समझावें वहाँ तक समझा कर साथ लें, और मजदूरों को भी समझाने की कोशिश करें। मैं जो कहता हूँ, उसका मतलब यह नहीं कि मजदूरों को न्याय से जो देना हो वह नहीं देना। वह उन्हें जरूर देना चाहिए। क्योंकि उन्हें उनका भाग पूरा नहीं मिलेगा, तो वे अपने दिल से काम नहीं कर सकेंगे।

लेकिन नेशनलाइज करनेवाले लोग कहते है कि आप देखें कि इंग्लैण्ड में क्या हाल है। मैं कहता हूँ देखिए, आज इंग्लैण्ड के मजदूर के अपने हाथ में राज्य है। वह समझ गए हैं कि इस तरह से तो हमारा काम नहीं चलेगा, तो खुद ज्यादा काम करते हैं। ''ज्यादा पैदा करो?'' यह उनका स्लोगन (नारा) है। ''ज्यादा पैदा करो और स्ट्राइक न करो।'' और दोनों मिलकर आज इस तरह से काम करते हैं कि आज वहाँ प्रोडक्शन (उत्पादन) बढ गया है। अब हम तो स्ट्राइक के बाद तनख्वाह बढ़ाए, लेकिन तनख्वाह वढ़ाने के बाद काम बढ़ाने की बात नहीं बनती। यह तो उल्टी बातें करते हैं। ऐसा ही रहा तो हम गिर जानेवाले हैं। तो मैं आप लोगों को यह समझाना चाहता हूँ कि यदि हम इस चीज़ को नहीं समझेंगे, तो हमारा काम कभी न बनेगा। हम अब ज्यादा बोझ नहीं खेंच सकते हैं। और चन्द दिन खींचे, तो भी वह काम नहीं चलेगा। लेकिन हम चाहते हैं कि यह चीज सब समझें कि जब तक हमारे मुल्क का प्रोडक्शन नहीं बढ़ेगा, जब तक हमारा मुल्क ज्यादा धन नहीं पैदा करेगा, तब तक हम उठ नहीं सकेंगे। क्योंकि हमारा मुल्क बहुत गिरा है। यह शायद आपको मालूम नहीं। हम पहले तो कर्जदार थे, आज हम लेनदार हैं। लेकिन लेनदार होते हुए हमारी हालत कर्जदार से बुरी हो गई है। क्योंकि कर्जा तो मिलनेवाला नहीं है और कर्जा तो खून का बूंद-बूंद निकाल कर ले गया लेने वाला। अब हम मुर्दार पड़े हैं। इतना नासिक में नोट छाप-छाप के रुपया तो बनाया। खूब इंफ्लेशन कर दिया। उसका असर आज हमारे ऊपर पड़ रहा है। हमारी इकोनॉमी (आर्थिक व्यवस्था) पर। बहुत गिर गए है हम। उसका किसी को ख्याल नहीं है। तो मैं यह चाहता हूँ कि मैं जो बात करता हूँ, उसको अच्छी तरह से सद्भाव से समझ लो। मैं आपकी कोई बुराई नहीं करना चाहता। लेकिन मैं आपको समझाना चाहता हूँ कि इस तरह से आप गलत काम करते रहेंगे, तो मुल्क को तो नुकसान ही होने वाला है, फायदा नहीं होगा।

जब पंडित नेहरू ने यह कहा कि तीन साल का ट्रूस करो, तो आप को समझना चाहिए कि वह तो कोई आप से कम दर्जे का सोशलिस्ट नहीं है। मुझको आप कहो कि मैं कैपिटलिस्ट का एजेंट हूँ। मुझे आप सब चीज़ कह सकते हो। क्योंकि मुझको तो आप जानते ही नहीं हैं। लेकिन उनको आप यह नहीं कह सकते हैं। जब उसने कहा कि ट्रूस करो, तो दूसरे ही दिन आपने वह ट्रसू तोड़ दिया। अब वह तो कांग्रेस में से निकल जाते हें। ठीक है निकल जाओ लेकिन आप लोगों का काम है कि कांग्रेस को कमजोर न होने दें। कांग्रेस ने तो अभी आपको आजाद ही कराया है। असली काम तो अब हमें शुरू करना है। मुल्क में से परदेशी हुकमत हट जाने से हमको मौका मिला है कि हम जैसा चाहें, वैसा भविष्य बना सकें। अच्छा भविष्य बनाने के काम में अगर आप हट जाए और साथ न दें, तो यह काम बिगाड़ देनेवाली बात है।

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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