नाटक एवं कविताएं >> क्योंजीमल और कैसे कैसलिया क्योंजीमल और कैसे कैसलियासुबीर शुक्ला
|
8 पाठकों को प्रिय 345 पाठक हैं |
बिलकुल कैसे-कैसलिया की तरह ! क्या करते हैं ये दोनों ? क्यों घबराते हैं लोग इनसे ? और क्यों आता है मजा इनके बारे में जान कर ? पढ़िए और पता कीजिए !
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
क्योंजीमल और कैसे-कैसलिया
क्योंजीमल, ये भी कोई नाम है ?
बिलकुल कैसे-कैसलिया की तरह !
क्या करते हैं ये दोनों ?
क्यों घबराते हैं लोग
इनसे ?
और क्यों आता है मजा
इनके
बारे में जान कर ?
पढ़िए और पता कीजिए !
क्योंजीमल, ये भी कोई नाम है ?
बिलकुल कैसे-कैसलिया की तरह !
क्या करते हैं ये दोनों ?
क्यों घबराते हैं लोग
इनसे ?
और क्यों आता है मजा
इनके
बारे में जान कर ?
पढ़िए और पता कीजिए !
क्योंजीमल और कैसे-कैसलिया
इनसे मिलिए-ये हैं क्योंजीमल।
बात-बात पर पूछ देते हैं-
क्यों-क्यों-क्यों ?
भले ही आप से जवाब देते बने या नहीं।
पता नहीं क्यों !
और ये हैं उनके दोस्त-कैसे-कैसलिया। ये भी कोई कम नहीं हैं, मौका लगते ही पूछ देते हैं-कैसे-कैसे-कैसे ?
भूले-भटके कभी दोनों से एक साथ मुलाकात हो गई तो क्यों और कैसे के बीच ही भटकते रहेंगे आप । क्यों-क्यों-क्यों ? कैसे-कैसे-कैसे ? पढ़िये और पता कीजिये।
1
गुरूजी नमस्ते ! किधर चले ?
नमस्ते ! जरा बाजार जा रहा हूं।
बाजार ? क्यों-क्यों-क्यों ?
गेहूं पिसवाना है ना, इस लिए।
बाजार ? कैसे-कैसे-कैसे ?
साइकिल पर ! वैसे निकला तो पैदल था, पर
थैली देख कर शिवदास ने अपनी गाड़ी दे दी।
अच्छा, गेहूं पिसवाना है। क्यों-क्यों-क्यों ?
अरे, आटा जो चाहिए है।
पिसवाना ? कैसे-कैसे-कैसे ?
चक्की में, भई।
आटा ? क्यों-क्यों-क्यों ?
क्यों भईया रोटी नहीं बनाएंगे ?
रोटी ? कैसे-कैसे-कैसे ?
अरे आटे को सानेंगे, बेलेंगे, तवे पर पकाएंगें
आग पर फुलाएंगे।
क्यों-क्यों-क्यों ?
भले ही आप से जवाब देते बने या नहीं।
पता नहीं क्यों !
और ये हैं उनके दोस्त-कैसे-कैसलिया। ये भी कोई कम नहीं हैं, मौका लगते ही पूछ देते हैं-कैसे-कैसे-कैसे ?
भूले-भटके कभी दोनों से एक साथ मुलाकात हो गई तो क्यों और कैसे के बीच ही भटकते रहेंगे आप । क्यों-क्यों-क्यों ? कैसे-कैसे-कैसे ? पढ़िये और पता कीजिये।
1
गुरूजी नमस्ते ! किधर चले ?
नमस्ते ! जरा बाजार जा रहा हूं।
बाजार ? क्यों-क्यों-क्यों ?
गेहूं पिसवाना है ना, इस लिए।
बाजार ? कैसे-कैसे-कैसे ?
साइकिल पर ! वैसे निकला तो पैदल था, पर
थैली देख कर शिवदास ने अपनी गाड़ी दे दी।
अच्छा, गेहूं पिसवाना है। क्यों-क्यों-क्यों ?
अरे, आटा जो चाहिए है।
पिसवाना ? कैसे-कैसे-कैसे ?
चक्की में, भई।
आटा ? क्यों-क्यों-क्यों ?
क्यों भईया रोटी नहीं बनाएंगे ?
रोटी ? कैसे-कैसे-कैसे ?
अरे आटे को सानेंगे, बेलेंगे, तवे पर पकाएंगें
आग पर फुलाएंगे।
|
लोगों की राय
No reviews for this book