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मनोरंजक कथाएँ >> चंचल बंदरिया

चंचल बंदरिया

आशा रानी व्होरा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6218
आईएसबीएन :81-7315-245-4

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प्रस्तुत है नटखट बंदरिया की कहानी

Chanchal Bandariya -A Hindi Book by Asha Rani by Vhora

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

चंचल बंदरिया


एक थी बंदरिया। नाम था उसका चंचल। जैसा नाम, वैसे गुण। बड़ी चंचल, चतुर और चालाक थी। अपने साथियों को खूब हँसाती। राह चलते लोगों को खूब छेड़ती। इसमें उसे मजा आता था। जब कोई उसे मारने दौड़ता वह अपने सारे साथियों को इकट्ठा  कर लेती और वे मिलकर उस पर झपट पड़ते।

पर एक बात उसमें बहुत अच्छी थी। वह भले आदमियों को कभी तंग नहीं करती थी। अपने साथियों के साथ भी उसका व्यवहार बहुत अच्छा था।  इसलिए वह सभी को अच्छी लगती थी। मंदिर जाते लोग उसे चने खिलाते। वह कभी उनको सलाम करती, कभी नमस्ते करती और लोग हँसते हुए चले जाते। तंग करती, केवल शरारती और लड़ने-भिड़ने वाले लड़कों को ही।
उस गांव में एक जमींदार था। खूब शान-शौकत और रोबदाब वाला। गरीब किसानों का खून चूस-चूस कर उसने खूब दौलत इकट्ठी की थी। वर्षा अच्छी हो या सूखा पड़े, फसल हो या नहीं, वह अपना लगान सख्ती से वसूल करता। बेचारे गरीब किसान उससे बड़े डरते थे। जब कभी लगान-वसूली में देर हो जाए, जमींदार उनके घर की नीमाली करवा देता था। उनके बैल छीन लेता। जिसके पास देने के लिए कुछ भी न होता, उसे कोड़ों से मारा जाता। गांव वाले जितना ही उससे डरते थे, वह उतना ही अकड़ कर चलता था।
ऐसे जमींदार का बेटा भला कैसे अच्छा हो सकता था ! वह भी बड़ा घमंडी और शरारती था।


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