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नेहरू बाल पुस्तकालय >> खिलौनेवाली

खिलौनेवाली

सत्य प्रकाश अग्रवाल

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6223
आईएसबीएन :81-237-4315-7

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प्रस्तुत है पुस्तक खिलौनेवाली...

Khilaunevali-A Hindi Book by Shankar Sultanpuri

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

खिलौनेवाली

सुबह होते-होते रामनगर कस्बे में सारंगी की आवाज गूंज उठती। वहां कण-कण में उल्लास छा जाता। बच्चों के चेहरे खिल जाते। जो सोये होते, चौंककर उठ बैठते। जो नाश्ता कर रहे होते, अधूरा छोड़ देते। जो जिस हालत में होता, वैसे ही गली की ओर दौड़ पड़ता।

जब तक बच्चे सड़क के किनारे छायादार आम के पेड़ के नीचे एकत्र होते, तब तक सामने से खिलौने वाली आ जाती। उसके सिर पर खिलौनों की टोकरी होती और हाथ में सारंगी। वह ऊपर से नीचे तक खूब सजी-धजी रहती। उसे देखकर बच्चे उल्लास से तालियां बजाते, ‘‘आ गई ! खिलौनेवाली चाची आ गई।’’

चुन्नू, मुन्नू, पप्पी, शिब्बू, जाहिद, सुवेल, पम्पी, जरीना....ये सब चारों ओर से उसे घेर कर उसका स्वागत करते। खिलौनेवाली चाची टोकरी उतारकर नीचे रख देती और बच्चों में घुल-मिल जाती।
बच्चे खिलौनों की टोकरी से अपनी –अपनी पसंद के खिलौने देखने लगते। खिलौने वाली चाची एक-एक कर उन्हें सब खिलौने दिखा देती।
कोई हाथी लेता, तो कोई घोड़ा। किसी को ऊंट पसंद आता तो किसी को तोता। बच्चे अपनी-अपनी पसंद के खिलौने लेकर पैसे दे देते। जिनके पास न होते वे अगले दिन चुका देने का वादा कर देते।

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