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चबर चबर

गिजुभाई बधेका

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :38
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6225
आईएसबीएन :81-237-4841-8

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प्रस्तुत है गिजुभाई बधेका की 11 कहानियों का संग्रह...

Chabar Chabar -A Hindi Book by Gijubhai Badheka - चबर चबर - गिजुभाई बधेका

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भोला भाला

एक था घड़ियाल। झूठा और मक्कार। जिस नदी में वह रहता था उसका पानी सूखने लगा। ‘अब यहां रहने में जान का खतरा है’ उसने सोचा, ‘झील में जाना पड़ेगा।’ झील थी काफी दूर। फिर भी साहस कर वह शाम को चल दिया। रात भर चलता रहा। भोर होते-होते वह थककर चूर हो गया। झील अभी भी थोड़ी दूर थी। घड़ियाल में अब एक डग भरने की भी शक्ति नहीं थी। तभी उसने एक चरवाहे को अपनी भैसों के साथ गुजरते हुए देखा। वह खुश होकर उससे प्रार्थना करने लगा, ‘‘चरवाहे चाचा....चरवाहे चाचा, मुझे अपनी गोद में उठा लो न। मुझे केवल झील तक जाना है और मैं बहुत थक चुका हूँ।’
चरवाहा दूर से ही बोला, ‘ना, बाबा ना। मैं तुझे उठाऊंगा तो तू मुझे ही इस संसार से उठा देगा।’

घड़ियाल ने अपने गले पर हाथ रखकर कहा, ‘कसम से। आप मुझ पर दया करेंगे तो मैं आपको दुआएँ दूँगा। आपको पुण्य मिलेगा। सो अलग।’ चरवाहा था भोला भाला। उसने धूर्त घडिय़ाल की बात पर भरोसा कर दिया। उसने तुरन्त घड़ियाल को उठाकर कंधे पर डाला और चल दिया। घंटा-भर धूप में चलकर उसने घड़ियाल को झील के किनारे उतारना चाहा। घड़ियाल हाथ जोड़कर बोला, ‘चरवाहे चाचा...चरवाहे चाचा जब इतनी दया की है तो थोड़ी दया और कर दो। मुझे किनारे पर नहीं, पानी में छोड़ दो।’ चरवाहे ने कहा, ‘ठीक है’ और दो कदम बढ़ा कर उसे पानी में छोड़ने लगा तो घड़ियाल फिर रिरियाया, ‘चरवाहे चाचा चरवाहे चाचा यहाँ तो बहुत कम पानी है।

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