लोगों की राय

नेहरू बाल पुस्तकालय >> राणा हारा नहीं

राणा हारा नहीं

आनन्द कृष्ण

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6230
आईएसबीएन :81-237-4571-0

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

200 पाठक हैं

राणा आज बहुत खुश था। तड़के ही उसकी नींद खुल गयी। आज से वह फिर स्कूल जायेगा।

Rana Hara Nahin A Hindi Book by Kiran Tamuli

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

राणा हारा नहीं

राणा आज बहुत खुश था। तड़के ही उसकी नींद खुल गयी। आज से वह फिर स्कूल जायेगा। एक साल बाद वह अपने मित्रों से मिलेगा। उनके साथ बातचीत करेगा, हंसी मजाक करेगा, हंसेगा, खेलेगा वाह ! कितना मजा आयेगा ! लेकिन यह बैसाखी उसका सारा मजा किरकिरा कर देगी।

सवेरे मां ने उसे नहलाया और यूनिफार्म पहना दी नये कपड़ों की खुशबू राणा को बहुत अच्छी लगती थी।
मां जब उसके बाल संवार रही थी, तब उसने पूछा, ‘‘मां, मैं स्कूल जाऊंगा कैसे ?’’ मां ने जवाब दिया, ‘‘बेटे। पिताजी साइकिल पर छोड़ आयेंगे।’’

पिताजी द्वारा लाई हुई बैसाखी को दिखाते हुए उसने कहा, ‘‘क्या यह भी साथ ले जाऊँगा ?’’ मां ने उत्तर दिया, ‘‘हां, ले जाना। बहुत दिनों बाद स्कूल जा रहे हो, ज्यादा इधर-उधर मत घूमना, समझ गये न !’’
‘‘पर, मैं इसे कैसे ले जाऊंगा ?’’ बैसाखी को कपड़े से पोंछते हुए मां ने कहा, ‘‘पिताजी इसे साइकिल पर बांध लेंगे। स्कूल की छुट्टी होते ही वह तुम्हें स्कूल से भी ले आयेंगे।’’

राणा की किताबें समेटकर मां ने स्कूल बैग में भर दीं और बैग साइकिल की टोकरी में रख दिया। पानी की बोतल राणा ने अपने कंधे पर लटका ली। पिता की साइकिल पर सवार होकर राणा स्कूल पहुंच गया। पिता उसे साइकिल से उतारते उससे पहले ही उसने जी भरकर अपने स्कूल को देखा। सब कुछ वैसा ही था। हेडमास्टर साहब के कमरे के सामने वाला यह फूलों का बगीचा और उसके पास का आम का पेड़, सब कुछ पहले जैसा ही था। स्कूल की घंटी भी उसी पुरानी जगह पर लटकी हुई थी।

प्रथम पृष्ठ

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book