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गौरी

रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रकाशक : झारीसन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6246
आईएसबीएन :00000

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गौरी एक ऐसी कहानी जो सोचने पर मजबूर करती है ......

Gauri-A Hindi Book by Ravindranath Tagore

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

गौरी


गौरी एक पुराने, रईस परिवार की सुंदर, नाज़ों में पली लड़की थी। उसके पति परेश ने हाल ही में अपनी तंगहाली की स्थिति को अपने प्रयासों से सुधारा था। जब तक वह गरीबी की हालत में था गौरी के माता-पिता ने अपनी बेटी को घर पर ही रखा था, वे उसे अभावों में नहीं झोंकना चाहते थे; इसलिए जब अंत में वह अपने पति के घर गई तो वह कमसिन नहीं रह गई थी। और परेश को ऐसा बिलकुल नहीं लगता था कि वह उसकी है।

वह पश्चिम के एक छोटे-से कसबे में वकील था, और उसके साथ कोई निकट का संबंधी नहीं रहता था। उसकी सारी चिंता अपनी पत्नी के बारे में होती थी, इतनी अधिक की कभी-कभी तो वह कचहरी बंद होने से पहले ही घर आ जाता था। पहले तो गौरी की समझ में ही नहीं आया कि वह अचानक क्यों वापस आ जाता था। कभी-कभी यह भी होता कि वह किसी नौकर को अकारण ही निकाल देता था; कोई भी नौकर अधिक दिनों तक उसे रास नहीं आता था। विशेषकर यदि गौरी किसी खास नौकर को इसलिए रखना चाहती कि वह काम का आदमी है तो उस नौकर की तो तुरंत छुट्टी होनी निश्चित थी। हँसमुख गौरी को इससे चिढ़ होती थी, लेकिन वह जितनी चिढ़ती उसके पति का व्यवहार उतना ही और विचित्र होता जाता था।

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