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मनोरंजक कथाएँ >> सोमवार बेहतर है इतवार से

सोमवार बेहतर है इतवार से

नादिन गोर्डाइमर

प्रकाशक : आशीर्वाद प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6253
आईएसबीएन :00000

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नादीन गार्डीमर की कहानी सोमवार से बेहतर इतवार ...

Somvar Behtar Etvar Se A Hindi Book by Nadin Gardima

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मक्खन में तलकर सुर्ख होती सूखी मछलियों की महक के साथ आगमन हुआ उस फ्लैट में सुबह का। घर के छोटे सदस्य तो इतवार के दिनों में देर तक बिस्तर पर पड़े रहते थे, लेकिन बूढ़ा मालिक उठ चुका था और नीचे गली में दौड़ते घोड़ों की टकबक ! टकबक ! की आवाज़ के साथ अपने उस्तरे को पैना कर रहा था।

‘‘लिज़ाबेथ !’’ वह डकारा ! ‘‘मेरा नाश्ता लाओ ! तैयार रखना ।’’ उसकी चप्पलें गलियारे में इधर से उधर फटफट करती जा रही थी। वह शेव के बाद गुलाबी चेहरा लिये रसोई के दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ, उसका पेट उसके सफेद पायजामे में बाहर को निकला पड़ रहा था : ‘‘मेरा नाश्ता कहाँ है?’’

एलिज़ाबेथ खाने के कमरे में- जो सुबह तक बंद होने के कारण पिछली रात के जिगर और सिगार की महक से भरा था- सूखी मछलियों की मक्खनी तथा समुद्री गंध, गिलास में चमकता ठण्डा संतरे का और दो बड़े सिंके टोस्ट लेकर आई। वह फिर बाहर निकल गई, किसी और के जूतों में चुपचाप चलती हुई, अपनी नीली बुनी हुई टोपी में अपना खिन्न माथा समेटे।
‘‘लिज़ाबेथ !’’ बेसब्री से रुँधी आवाज़ आई। ‘‘चाय कहाँ है ?’’ उसने स्टोव पर से चाय का बर्तन उतारा और उसे मेज़ पर ले आई।

वह गुर्राया, ‘‘तुम देखती क्यों नहीं कि दूध गरम है या नहीं ? मुझे हमेशा टोकना क्यों पड़ता है तुम्हें?’’
उसने जग को छूकर देखा और फिर बाहर निकल गई।


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