अतिरिक्त >> छात्र की परीक्षा छात्र की परीक्षारबीन्द्रनाथ टैगोर
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प्रस्तुत है पुस्तक छात्र की परीक्षा ......
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सिर का सौदा
कोसल नरेश बड़े उदार प्रजा-वत्सल और प्रतापी राजा थे। वह दुखियों और
बेसहारा के सहारा थे और अनाथों के नाथ। उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली
थी। उनके यश और कीर्ति से जलकर काशी के राजा मन-ही-मन कोसल नरेश के प्रति
द्वेष से भर उठे- ‘‘हम से छोटा है वह और उसका इतना
मान ?
स्वयं मेरी प्रजा मुझसे ज्यादा कोसल के राजा को चाहती है।’’
काशी के राजा ने एक दिन अपने सेनापति को बुलाकर कहा- ‘‘सेनापति, अपनी तलवारें निकालो, सेना इकट्ठी करो और कोसल के राजा को मुझसे बढ़कर यशस्वी होने का मजा चखा दो।’’
भीषण युद्ध हुआ। आखिर काशी के राजा की जीत हुई। कोसलराजा हार कर अपना राज्य छोड़कर वन में भागने को मजबूर हुए। लज्जा और दुख से भरे कोसल के राजा वन में ही प्रभु इच्छा पर जीने और अपना प्रताप फैलाने लगे।
काशी के राजा अपनी विजय की खुशी में और भी दंभ और अभिमान से चूर हो उठे। अपने दरबार में घोषणा करते हुए बोले- ‘‘संसार में शक्तिशाली ही अपना सच्चा यश फैला सकता और अपने मान और धन की रक्षा कर सकता है। एक कमजोर और हारे हुए व्यक्ति का कौन यश गाएगा ?’’
स्वयं मेरी प्रजा मुझसे ज्यादा कोसल के राजा को चाहती है।’’
काशी के राजा ने एक दिन अपने सेनापति को बुलाकर कहा- ‘‘सेनापति, अपनी तलवारें निकालो, सेना इकट्ठी करो और कोसल के राजा को मुझसे बढ़कर यशस्वी होने का मजा चखा दो।’’
भीषण युद्ध हुआ। आखिर काशी के राजा की जीत हुई। कोसलराजा हार कर अपना राज्य छोड़कर वन में भागने को मजबूर हुए। लज्जा और दुख से भरे कोसल के राजा वन में ही प्रभु इच्छा पर जीने और अपना प्रताप फैलाने लगे।
काशी के राजा अपनी विजय की खुशी में और भी दंभ और अभिमान से चूर हो उठे। अपने दरबार में घोषणा करते हुए बोले- ‘‘संसार में शक्तिशाली ही अपना सच्चा यश फैला सकता और अपने मान और धन की रक्षा कर सकता है। एक कमजोर और हारे हुए व्यक्ति का कौन यश गाएगा ?’’
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