वास्तु एवं ज्योतिष >> रत्न और आपका भाग्य रत्न और आपका भाग्यरमेशचन्द्र श्रीवास्तव
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रत्नों को धारण करने के सिद्धांत एवं उसके प्रभावों की सहज व्याख्या...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
माँ आद्यशक्ति ने इस सृष्टि में विभिन्न प्रकार के रत्नों का भण्डार मानव
को कल्याणकारी मंगल कामनाओं के साथ वरदान स्वरूप प्रदान किया है। अब मानव
का धर्म-कर्म है कि वह उन तमाम रत्नों में से किन्हें चुनता है और क्यों
चुनता है ?
एक बात तो निश्चित है कि व्यक्ति प्रत्येक बहुमूल्य रत्नों को अपने सुख के लिए आनन्द की प्राप्ति के लिए चुनता है, संकलित करता है। उनमें से ग्रहों से सम्बन्धित रत्नों को हर व्यक्ति अपने भाग्य को चमकाने के लिए लेता है, पहनता है और अपने को सुखी तथा सम्पन्न बनाना चाहता है।
किन्तु मेरे अनुभव में आया कि रत्नों को धारण करने का परामर्श देने वाले विभिन्न ज्योतिषियों को यह वैज्ञानिकता नहीं समझ में आती है कि ग्रहों का क्या संबंध रत्नों से होता है या किन कारणों से रत्नों को धारण करना उचित होता है। कभी-कभी तो बुरे ग्रहों के प्रभाव में आया व्यक्ति किसी का परामर्श पाकर रत्न धारण कर लेता है और वह उस रत्न को धारण करते ही भयंकर कुफल भोगने लगता है।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस वैज्ञानिक युग में भी अधिकांश ज्योतिषियों को ग्रहों तथा रत्नों का क्या, कैसा सम्बन्ध है यह समझ में नहीं आया। ग्रहों में व्यक्ति के सृजन एवं संहार की जितनी प्रबल शक्ति है उतनी ही शक्ति रत्नों में ग्रहों की शक्ति घटाने तथा बढ़ाने की भी होती है। वैज्ञानिक भाषा में रत्नों की इस शक्ति को हम आकर्षण की विकर्षण की शक्ति कहते हैं। रत्नों में अपने से सम्बन्धित ग्रहों की रश्मियों, रंगों, चुम्बकत्व शक्ति तथा वाइव्रेशन (कम्पन) को खींचने की शक्ति भी होती है और उपरोक्त को परावर्तित कर देने की शक्ति भी होती है। यह निर्विवाद सत्य है। पूर्ण वैज्ञानिक सत्य है।
तो हमें रत्न धारण करते समय यह विचार अवश्य कर लेना चाहिए कि जिस रत्न को हम धारण करने जा रहे हैं। वह अपने से सम्बन्धित ग्रह की पावर को आकर्षित करेगा या परावर्तित कर देगा। यदि अशुभ ग्रह की रश्मियों आदि को आकर्षित कर लिया ग्रहों का कुफल काफी कम हो जायेगा। इसी प्रकार शुभ ग्रहों के अशुभ के शुभत्व पूर्ण रश्मियों आदि को आकर्षित करके ग्रह की शक्ति हम पर बढ़ा दिया तो हमारा भाग्य ही चमक जायेगा।
इसलिए इस पुस्तक ‘रत्न और आपका भाग्य’ लिखने की आवश्यकता पड़ी ताकि पाठकों को यह सिद्धान्त पूरी तरह समझ में आ जाये कि कब कौन-सा रत्न धारण करना हमारे लिए भाग्यवर्द्धक होगा और कौन सा रत्न धारण करके हम बुरे ग्रह के कुप्रभावों से अपने को बचा सकें।
अब सम्पूर्ण पुस्तक पढ़ने के बाद स्वयं पाठकगण स्वयं निर्णय कर सकेंगे कि मैं अपने मन्तव्य तक सफल हो सका हूँ।
‘रत्न और आपका भाग्य’ पुस्तक के प्रकाशन में जो सुरुचिपूर्ण चेतना का परिचय भगवती पॉकेट बुक्स के प्रकाशक श्री राजीव अग्रवाल ने प्रदर्शित किया है वह आभार प्रदर्शन के योग्य है। मैं उनका हृदय से कृतज्ञ हूँ।
इस पुस्तक की आलोचना समालोचना मैं अपने सरल सहज पाठकों पर छोड़ता हूँ।
एक बात तो निश्चित है कि व्यक्ति प्रत्येक बहुमूल्य रत्नों को अपने सुख के लिए आनन्द की प्राप्ति के लिए चुनता है, संकलित करता है। उनमें से ग्रहों से सम्बन्धित रत्नों को हर व्यक्ति अपने भाग्य को चमकाने के लिए लेता है, पहनता है और अपने को सुखी तथा सम्पन्न बनाना चाहता है।
किन्तु मेरे अनुभव में आया कि रत्नों को धारण करने का परामर्श देने वाले विभिन्न ज्योतिषियों को यह वैज्ञानिकता नहीं समझ में आती है कि ग्रहों का क्या संबंध रत्नों से होता है या किन कारणों से रत्नों को धारण करना उचित होता है। कभी-कभी तो बुरे ग्रहों के प्रभाव में आया व्यक्ति किसी का परामर्श पाकर रत्न धारण कर लेता है और वह उस रत्न को धारण करते ही भयंकर कुफल भोगने लगता है।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस वैज्ञानिक युग में भी अधिकांश ज्योतिषियों को ग्रहों तथा रत्नों का क्या, कैसा सम्बन्ध है यह समझ में नहीं आया। ग्रहों में व्यक्ति के सृजन एवं संहार की जितनी प्रबल शक्ति है उतनी ही शक्ति रत्नों में ग्रहों की शक्ति घटाने तथा बढ़ाने की भी होती है। वैज्ञानिक भाषा में रत्नों की इस शक्ति को हम आकर्षण की विकर्षण की शक्ति कहते हैं। रत्नों में अपने से सम्बन्धित ग्रहों की रश्मियों, रंगों, चुम्बकत्व शक्ति तथा वाइव्रेशन (कम्पन) को खींचने की शक्ति भी होती है और उपरोक्त को परावर्तित कर देने की शक्ति भी होती है। यह निर्विवाद सत्य है। पूर्ण वैज्ञानिक सत्य है।
तो हमें रत्न धारण करते समय यह विचार अवश्य कर लेना चाहिए कि जिस रत्न को हम धारण करने जा रहे हैं। वह अपने से सम्बन्धित ग्रह की पावर को आकर्षित करेगा या परावर्तित कर देगा। यदि अशुभ ग्रह की रश्मियों आदि को आकर्षित कर लिया ग्रहों का कुफल काफी कम हो जायेगा। इसी प्रकार शुभ ग्रहों के अशुभ के शुभत्व पूर्ण रश्मियों आदि को आकर्षित करके ग्रह की शक्ति हम पर बढ़ा दिया तो हमारा भाग्य ही चमक जायेगा।
इसलिए इस पुस्तक ‘रत्न और आपका भाग्य’ लिखने की आवश्यकता पड़ी ताकि पाठकों को यह सिद्धान्त पूरी तरह समझ में आ जाये कि कब कौन-सा रत्न धारण करना हमारे लिए भाग्यवर्द्धक होगा और कौन सा रत्न धारण करके हम बुरे ग्रह के कुप्रभावों से अपने को बचा सकें।
अब सम्पूर्ण पुस्तक पढ़ने के बाद स्वयं पाठकगण स्वयं निर्णय कर सकेंगे कि मैं अपने मन्तव्य तक सफल हो सका हूँ।
‘रत्न और आपका भाग्य’ पुस्तक के प्रकाशन में जो सुरुचिपूर्ण चेतना का परिचय भगवती पॉकेट बुक्स के प्रकाशक श्री राजीव अग्रवाल ने प्रदर्शित किया है वह आभार प्रदर्शन के योग्य है। मैं उनका हृदय से कृतज्ञ हूँ।
इस पुस्तक की आलोचना समालोचना मैं अपने सरल सहज पाठकों पर छोड़ता हूँ।
रमेश चन्द्र श्रीवास्तव
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