अतिरिक्त >> ज्योतिष सम्पूर्ण ज्ञान ज्योतिष सम्पूर्ण ज्ञानभोजराज द्विवेदी
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प्रस्तुत है पुस्तक भोजराज द्विवेदी की ज्योतिष सम्पूर्ण ज्ञान.......
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
डॉ० भोजराज द्विवेदी
(इक्कीसवीं शताब्दी के भविष्यद्रष्टा)
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य डॉ०
भोजराज द्विवेदी का जन्म ग्राम दुन्दाडा, जिला जोधपुर में 5
सितम्बर, 1949 को हुआ। धार्मिक प्रवृत्ति के प्रतिभाशाली डॉ० भोजपुर
द्विवेदी एम० ए० (संस्कृत) प्रथम श्रेणी में, पी-एच० डी० (ज्योतिष) एवं
डी० लिट० की उपाधियों से सम्मानित हैं। 7 मार्च, 1966 को ग्राम समदडी जिला
बाड़मेर में अखण्ड सौभाग्यवती जानकी देवी से इनका विवाह सम्पन्न हुआ एवं
दो आज्ञाकारी पुत्रियाँ एवं एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
इनकी यशस्वी लेखनी से रचित लगभग एक सौ आठ पुस्तकें देश-विदेशों में पढ़ी जाती हैं। देश व विदेशों में इनके विभिन्न कार्यक्रमों से अनेक लोग लाभान्वित हुए है एवं इनको कई बार कई स्थानों पर नागरिक अभिनन्दन समारोहों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। ‘अज्ञात दर्शन पाक्षिक एवं ‘श्री चण्डमार्तण्ड’ पंचांग का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन गत 23 वर्षों से कर रहे हैं।
भारतीय प्राच्यविधाओं के उत्थान में समर्पित भाव से जो कार्य डॉ० द्विवेदी कर रहे हैं, वह एक साधारण व्यक्ति द्वारा सम्भव नहीं। वे इक्कीसवीं शताब्दी में ज्योतिष जगत के तेजस्वी सूर्य हैं तथा कालजयी समय के अनमोल हस्ताक्षर हैं, जो कि युग पुरुष के रूप में याद किये जायेंगे।
डॉ० भोजराज द्विवेदी के नेतृत्व में अखिल भारतीय ज्योतिष पत्रकार परिषद् (राज०) की स्थापना 1977 में हुई। यह संस्था गत 22 वर्षों से ज्योतिष-शास्त्र में भारतीय प्राच्य विद्याओं के उन्नयन हेतु दिन-रात संकल्पित एवं समर्पित भाव से कार्य कर रही है। मानव मात्र के लिए उपयोगी इस दिव्य ज्ञान के प्रचार –प्रसार हेतु ज्योतिष मार्तण्ड, अंकविद्या विशारद, हस्तरेखा विशारद, रेखा मार्तण्ड, मंत्र मार्तण्ड वास्तु मार्तण्ड भविष्य भाष्कर जैसे 22 प्रकार के कोर्स छः माह के पत्राचार पाठ्यक्रम द्वारा प्रारम्भ कर रखे हैं। जिसकी विस्तृत, जानकारी आप टिकट लगे जवाबी लिफाफे द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।
संस्था के तत्वावधान में अनेक राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन हुआ है जिसमें जोधपुर 1982 मोदीनगर 1983, दिल्ली 1984, जोधपुर 1986, सहारनपुर 1987, जोधपुर 1992, बम्बई 1997, हरिद्वार 1998, उदयपुर 1998 अहमाबाद 1998, ग्वालियर 1998, नेपाल (काण्माडू) 1998, प्रमुख उपलब्धियों के ऐतिहासिक सम्मेलन रहे। अब तक हमारे यहाँ से इस विधा के एक हजार से अधिक विद्वानों को सम्मानित किया जा चुका है। 14/15 दिसम्बर 1996, 20 दिसम्बर 1998 को जोधपुर में अन्तर्राष्ट्रीय वास्तु सम्मेलन किया गया। आगे भी देश-विदेश में ज्योतिष, तंत्र-मन्त्र एवं वास्तु सम्मेलनों का आयोजन किया जाता रहेगा। इस संस्था के सदस्य बनना भी आप लोगों के लिए गौरव व सम्मान की बात है।
इनकी यशस्वी लेखनी से रचित लगभग एक सौ आठ पुस्तकें देश-विदेशों में पढ़ी जाती हैं। देश व विदेशों में इनके विभिन्न कार्यक्रमों से अनेक लोग लाभान्वित हुए है एवं इनको कई बार कई स्थानों पर नागरिक अभिनन्दन समारोहों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। ‘अज्ञात दर्शन पाक्षिक एवं ‘श्री चण्डमार्तण्ड’ पंचांग का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन गत 23 वर्षों से कर रहे हैं।
भारतीय प्राच्यविधाओं के उत्थान में समर्पित भाव से जो कार्य डॉ० द्विवेदी कर रहे हैं, वह एक साधारण व्यक्ति द्वारा सम्भव नहीं। वे इक्कीसवीं शताब्दी में ज्योतिष जगत के तेजस्वी सूर्य हैं तथा कालजयी समय के अनमोल हस्ताक्षर हैं, जो कि युग पुरुष के रूप में याद किये जायेंगे।
डॉ० भोजराज द्विवेदी के नेतृत्व में अखिल भारतीय ज्योतिष पत्रकार परिषद् (राज०) की स्थापना 1977 में हुई। यह संस्था गत 22 वर्षों से ज्योतिष-शास्त्र में भारतीय प्राच्य विद्याओं के उन्नयन हेतु दिन-रात संकल्पित एवं समर्पित भाव से कार्य कर रही है। मानव मात्र के लिए उपयोगी इस दिव्य ज्ञान के प्रचार –प्रसार हेतु ज्योतिष मार्तण्ड, अंकविद्या विशारद, हस्तरेखा विशारद, रेखा मार्तण्ड, मंत्र मार्तण्ड वास्तु मार्तण्ड भविष्य भाष्कर जैसे 22 प्रकार के कोर्स छः माह के पत्राचार पाठ्यक्रम द्वारा प्रारम्भ कर रखे हैं। जिसकी विस्तृत, जानकारी आप टिकट लगे जवाबी लिफाफे द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।
संस्था के तत्वावधान में अनेक राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन हुआ है जिसमें जोधपुर 1982 मोदीनगर 1983, दिल्ली 1984, जोधपुर 1986, सहारनपुर 1987, जोधपुर 1992, बम्बई 1997, हरिद्वार 1998, उदयपुर 1998 अहमाबाद 1998, ग्वालियर 1998, नेपाल (काण्माडू) 1998, प्रमुख उपलब्धियों के ऐतिहासिक सम्मेलन रहे। अब तक हमारे यहाँ से इस विधा के एक हजार से अधिक विद्वानों को सम्मानित किया जा चुका है। 14/15 दिसम्बर 1996, 20 दिसम्बर 1998 को जोधपुर में अन्तर्राष्ट्रीय वास्तु सम्मेलन किया गया। आगे भी देश-विदेश में ज्योतिष, तंत्र-मन्त्र एवं वास्तु सम्मेलनों का आयोजन किया जाता रहेगा। इस संस्था के सदस्य बनना भी आप लोगों के लिए गौरव व सम्मान की बात है।
1. हस्तरेखा विभाग
सन् 1981 में डॉ० भोजराज द्विवेदी द्वारा ‘अंगुष्ठ से भविष्य
ज्ञान’ एवं ‘पाँव तले भविष्य नामक दो पुस्तके
प्रकाशित हुई।
सामुद्रिक शास्त्र की दुनिया में इस नये विषय को लेकर हंगामा मच गया।
पाठकों ने इस पुस्तक को सराहा तथा इसके अनेक संस्करण छपे। सन् 1992 में
‘ज्योतिष और आकृति’ तथा सन् 1996 में
‘हस्तरेखाओं का
गहन अध्ययन’ दो भागों में प्रकाशित हुए। अपने 40 वर्षों के, सघन
अनुसंधान में दो लाख से अधिक हस्तप्रिन्ट के परीक्षण व अध्ययन से अनुभूत
प्रस्तुत पुस्तक इस विषय पर छठे पुष्प के रूप में आपके हाथ में
है।’
हस्त रेखाओँ का रहस्यमय संसार’ नामक यह कृति किसी भारतीय
विद्वान
द्वारा लिखी गयी संसार की श्रेष्ठ एवं बेजोड़ पुस्तकों में सर्वोपारि है।
इस पुस्तक की कीर्ति ने जेरमिन, कीरो एवं बेन्हाम जैसे विद्वानों को मीलों
पीछे छो़ड़ दिया है। डॉ० द्विवेदी भारत के पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने
हस्तरेखाओं को कम्पूटर पर लाने का अद्भुद प्रयास किया है। अभी
यह
प्रोग्राम ‘अंग्रेजी में है। शीघ्र ही हिन्दी गुजराती, मराठी व
अन्य
भाषाओं में इसका अनुवाद व संशोधन हो रहा है। हस्तरेखा विभाग में अनुभवी
विद्वान दिन रात काम कर रहे है। आप अपना हैण्ड प्रिन्ट भेजकर उनका फलादेश
डाक द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। प्रिन्ट पर प्रश्न भी पूछ सकते हैं। यह
विभाग भारत की ही नहीं अपितु विदेशों में अपने ढंग का अनोखा एवं सर्वोच्च
कीर्ति प्राप्त करने वाला विभाग होगा। यहाँ इस विषय पर लोगों को नये
प्रकाश व प्रेरणा बराबर मिलती रहेगी।
2. ज्योतिष विभाग
इस विभाग के अन्तर्गत विभिन्न कम्प्यूटर लगे हैं जो गणित एवं फलित दोनों
प्रकार की जन्मपत्रियों का निर्माण करते हैं। व्यक्ति की जन्म तारीख, जन्म
समय एवं स्थान के माध्यम से जन्मपत्रिका, वर्षफल, विवाहपत्रिका,
प्रश्नपत्रिका आदि का निर्माण सूक्ष्मातिसूक्ष्म गणित सूत्रों द्वारा होता
है। सही जन्मपत्रिका यदि बनी हुई है तो उस पर विभिन्न प्रकार के फलादेश
करवाने की व्यवस्था भी उपलब्ध है। हमारे यहाँ हैण्ड प्रिण्ट देखने की
सुविधा एवं चेहरा देखकर भविष्य बताने की विद्या का चमत्कार केवल उन्हीं
सज्जनों को प्राप्त है, जो हमारी संस्था ‘अज्ञातदर्शन सुपर
कम्प्यूटर सर्विसेज के संस्थापक, संरक्षण या आजीवन सदस्य हैं।
‘अज्ञातदर्शन सुपर कम्प्यूटर सर्विसेज के सदस्यों, व्यापारियों
व
उद्योगपतियों को वरीयता के साथ हम नियमित सेवाएँ घर बैठे भेजते हैं। इसके
लिये निःशुल्क प्रपत्र अलग से प्राप्त करें। डॉ द्विवेदी द्वारा
हजारों-लाखों भविष्यवाणियाँ लोगों के व्यक्तिगत जीवन हेतु की गईं जो
चमत्कारिक रूप से सत्य हुईं है। इसके साथ ही अब तक 2228 से अधिक राष्ट्रीय
व अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की भविष्यवाणियाँ जो समाचार-पत्रों में
प्रकाशित हुई, समय-चक्र के साथ-साथ चलकर सत्य प्रमाणित हो चुकी हैं। यह एक
ऐसा अपूर्ण रिकार्ड है, जो ज्योतिष के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा
गया है। यह एक ऐसा गौरवपूर्ण रिकार्ड है, जिसकी सीमा का लंघन कोई भी
दैवज्ञ अब तक नहीं कर पाया है।
3. वास्तु विभाग
हमने ‘इन्टरनेशनल वास्तु एसोशिएसन’ की स्थापना कर रखी
है
हमारे केन्द्र के वास्तुशास्त्रियों द्वारा वास्तु सम्बन्धी विभिन्न
त्रुटियों व दोषों का परिहार पूर्ण विधि-विधान से किया जाता है। यदि
व्यक्ति नक्शा भेजता है तो उस पर भी विचार-विमर्श करके सही स्थानों को
चिन्हित व संशोधित करके नक्शा वापस भेज दिया जाता है। जो सज्जन
‘वास्तु विजिट’ कराना चाहते हैं, उन्हें एडवांस
ड्राफ्ट भेजकर
समय निश्चित कराना चाहिये। वास्तु सम्बन्धियों दोषों का परिहार जहाँ तक हो
सके बिना तोड़-फोड़ करके कर दिया जाता है। इस विषय में परम
पूज्य
गुरुदेव डॉ० भोजराज द्विवेदी द्वारा लिखित पुस्तकें मार्ग-दर्शन हेतु काम
में ली जा सकती हैं।
4. यंत्र विभाग
विद्वान ब्राह्मणों की देख-रेख में विभिन्न प्रकार के यंत्रों का निर्माण
शुभ नक्षत्र, दिन व मुहुर्त में किया जाता है। यंत्र बनने के पश्चात उसमें
विधिवत् प्राण –प्रतिष्ठा करके ही भेजे जाते हैं। इस बात का
ध्यान
रखा जाता है कि सभी यंत्र यजमान द्वारा निर्दिष्ट धातु में सर्वशुद्ध
तरीके से बनाये जाते हैं। सभी यंत्र लॉकेट में उभरे हुए हैं तथा बनने के
पश्चात् निर्दिष्ट गंतव्य पर रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेज दिये जाते है। वी०
पी० नहीं की जाती। वी० पी० के लिए आधा एडवांस प्राप्त होना अनिवार्य है।
कार्यालय द्वारा अभिमंत्रित व सिद्ध यंत्रों का सम्पूर्ण सूची-पत्र अलग से
प्रार्थना कर, प्राप्त किया जा सकता है।
5. रत्न विभाग
अनेक जिज्ञासु सज्जनों के विशेष आग्रह पर हमारे यहाँ विभिन्न रत्नों एवं
राशि रत्नों के विक्रय की व्यवस्था की गई है। भाग्यवर्द्धक अँगूठियाँ एवं
लॉकेट भी पूर्ण विधि-विधान के साथ बनाये जाते हैं। एकमुखी रुद्राक्ष,
स्फटिक मालाएं, पारद शिवलिंग हत्था जोड़ी सभी प्रकार के तंत्र
की
सामग्री असली होने की गारण्टी के साथ दी जाती है। इस हेतु सम्पूर्ण
जानकारी हेतु सूची-पत्र अलग से प्राप्त करें।
6. विविध धार्मिक अनुष्ठान
संस्थान द्वारा 108 कुण्डीय पवित्र यज्ञ-कुण्डों, दस महाविद्याओं की जागृत
श्रीपीठ की स्थापना हो चुकी है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के दुर्योगों की
शान्ति हेतु व्यापार-व्यवसाय में रुकावट दूर करने हेतु दुःख, क्लेश, भय,
रोग से निवारण हेतु प्रेत बाधा एवं शत्रु को नष्ट करने हेतु, राजयोग, पद,
प्रतिष्टा की प्राप्ति हेतु धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ, पूजा-पाठ एवं शान्ति
कराने की सभी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।
7. प्रकाशन विभाग
जो कुछ भी शोध कार्य कार्यालय के विद्वानों द्वारा है उसको निरन्तर
प्रकाशित किया जाता है। ज्योतिष, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र एवं प्राचीन
भारतीय गूढ़ विद्या सम्बन्धी पुस्तकों का प्रकाशन भी विभाग द्वारा किया
जाता है। अब तक डॉ० द्विवेदी द्वारा 108 पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं।
जिसमें से 86 के लगभग प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त हमारे कार्यालय
से तीन नियतकालीन प्रकाशन अनवरत रूप से चल रहे हैं-
1. अज्ञातदर्शन (पाक्षिक) 1977 से प्रकाशित,
2. श्रीमाली प्रदीप (पाक्षिक) 1986 से नियमित,
3. चण्डामार्तण्ड पंचांग कैलेण्डर (वार्षिक) 1987 से नियमित प्रकाशित होते रहते हैं।
हमारे कार्यालय की दिन-प्रतिदिन बढ़ती लोकप्रियता के कारण नित्य-प्रति डाक से अनेक पत्र आते हैं। बहुत से पत्रों में लम्बी-चौड़ी कहानियाँ एवं व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन के बारे में बहुत अधिक लिखा होता है, जिसको पढ़ने मात्र में सीख तथा दूसरों को भी ऐसा करने दें। कृपाकर स्नेहिल पाठकों से निवेदन है कि कृपया अत्यन्त संक्षिप्त में सार की बात ही लिखा करें। कार्यालय द्वारा केवल उन्हीं पत्रों का जवाब दिया जाता है, जिसके साथ स्पष्ट पता लिखा हुआ, टिकट लगा लिफाफा संलग्न हो। परमपूज्य गुरुदेव से व्यक्तिगत सम्पर्क शंका समाधान के लिये ‘अज्ञातदर्शन’ अथवा ‘श्रीविद्या साधक परिवार’ के आजीवन सदस्य का उल्लेख अवश्य होना चाहिये। कई बार ऐसे मनीऑर्डर भी प्राप्त होते हैं जिन पर पूर्ण सन्देश एवं पता लिखा नहीं होता। पाठक लोग प्रायः ऐसा समझते हैं कि हमारा पत्र महत्वपूर्ण एवं कार्यालय में हमारा पत्र जन्मपत्रिकायें एवं नक्शे सुरक्षित पड़ें होंगे एवं पुराने पत्र से हमारा पता देख लेंगे, पर ऐसा सम्भव नहीं है। क्योंकि हमारे पास इतनी डाक आती है कि हर तीसरे-चौथे दिन डाक नष्ट करनी पड़ती है। अन्यथा ऑफिस में बैठने को जगह नहीं बच पाती। प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कि जितनी बार पत्र-व्यवहार करें, अपना पूरा पता लिखा हुआ, टिकट लगा, लिफाफा साथ भेजें।
1. अज्ञातदर्शन (पाक्षिक) 1977 से प्रकाशित,
2. श्रीमाली प्रदीप (पाक्षिक) 1986 से नियमित,
3. चण्डामार्तण्ड पंचांग कैलेण्डर (वार्षिक) 1987 से नियमित प्रकाशित होते रहते हैं।
हमारे कार्यालय की दिन-प्रतिदिन बढ़ती लोकप्रियता के कारण नित्य-प्रति डाक से अनेक पत्र आते हैं। बहुत से पत्रों में लम्बी-चौड़ी कहानियाँ एवं व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन के बारे में बहुत अधिक लिखा होता है, जिसको पढ़ने मात्र में सीख तथा दूसरों को भी ऐसा करने दें। कृपाकर स्नेहिल पाठकों से निवेदन है कि कृपया अत्यन्त संक्षिप्त में सार की बात ही लिखा करें। कार्यालय द्वारा केवल उन्हीं पत्रों का जवाब दिया जाता है, जिसके साथ स्पष्ट पता लिखा हुआ, टिकट लगा लिफाफा संलग्न हो। परमपूज्य गुरुदेव से व्यक्तिगत सम्पर्क शंका समाधान के लिये ‘अज्ञातदर्शन’ अथवा ‘श्रीविद्या साधक परिवार’ के आजीवन सदस्य का उल्लेख अवश्य होना चाहिये। कई बार ऐसे मनीऑर्डर भी प्राप्त होते हैं जिन पर पूर्ण सन्देश एवं पता लिखा नहीं होता। पाठक लोग प्रायः ऐसा समझते हैं कि हमारा पत्र महत्वपूर्ण एवं कार्यालय में हमारा पत्र जन्मपत्रिकायें एवं नक्शे सुरक्षित पड़ें होंगे एवं पुराने पत्र से हमारा पता देख लेंगे, पर ऐसा सम्भव नहीं है। क्योंकि हमारे पास इतनी डाक आती है कि हर तीसरे-चौथे दिन डाक नष्ट करनी पड़ती है। अन्यथा ऑफिस में बैठने को जगह नहीं बच पाती। प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कि जितनी बार पत्र-व्यवहार करें, अपना पूरा पता लिखा हुआ, टिकट लगा, लिफाफा साथ भेजें।
8. श्रीविद्या साधक परिवार
प्रायः सम्मोहन, यंत्र-मंत्र-तंत्र विद्या में रुचि रखने वाले
अनेक जिज्ञासु सज्जनों, छात्र-छात्राओं के अनेक फोन व पत्र पूज्य, गुरुदेव से मार्ग –दर्शन प्राप्त करने हेतु, उनसे दीक्षा प्राप्त करने हेतु, मंत्र शिविरों में भाग लेने आते हैं। ऐसे जिज्ञासु साधकों को सर्वप्रथम श्रीविद्या साधक परिवार का सदस्य बनना होता है। श्रीविद्या साधक परिवार से जुड़ने के बाद ही ऐसे जिज्ञासु सज्जनों को परमपूज्य गुरुदेव का पत्र या स्नेहिल सान्निध्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त सर्वधर्म सद्भाव सेवा ट्रस्ट अन्तर्राष्ट्रीय वास्तु एसोशिएसन लायंस क्लब इन्टरनेशनल इत्यादि अनेक संस्थाओं के प्रंमुख पद पर प्रतिष्ठापित होकर डॉ० भोजराज द्विवेदी का बहुआयामी व्यस्त व्यक्तित्व, मानव सेवा के अनेक संगठनों व रचनात्मक कार्यों से जुड़ा हुआ है। अतः बिना पूर्व सूचना व स्वीकृति के मिलने की चेष्ठा न करें।
अनेक जिज्ञासु सज्जनों, छात्र-छात्राओं के अनेक फोन व पत्र पूज्य, गुरुदेव से मार्ग –दर्शन प्राप्त करने हेतु, उनसे दीक्षा प्राप्त करने हेतु, मंत्र शिविरों में भाग लेने आते हैं। ऐसे जिज्ञासु साधकों को सर्वप्रथम श्रीविद्या साधक परिवार का सदस्य बनना होता है। श्रीविद्या साधक परिवार से जुड़ने के बाद ही ऐसे जिज्ञासु सज्जनों को परमपूज्य गुरुदेव का पत्र या स्नेहिल सान्निध्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त सर्वधर्म सद्भाव सेवा ट्रस्ट अन्तर्राष्ट्रीय वास्तु एसोशिएसन लायंस क्लब इन्टरनेशनल इत्यादि अनेक संस्थाओं के प्रंमुख पद पर प्रतिष्ठापित होकर डॉ० भोजराज द्विवेदी का बहुआयामी व्यस्त व्यक्तित्व, मानव सेवा के अनेक संगठनों व रचनात्मक कार्यों से जुड़ा हुआ है। अतः बिना पूर्व सूचना व स्वीकृति के मिलने की चेष्ठा न करें।
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