कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँप्रकाश माहेश्वरी
|
335 पाठक हैं |
‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।
सच!
एक सिहरन-सी मालती के शरीर में ऊपर से नीचे तक दौड़ गई। उसने भर आई आँखों से स्नेहिल के पापा की ओर निहारा!
स्नेहिल के पापा ने आगे बढ़ मालती के सम्मुख घुटनों के बल बैठ नमन किया, ''...हाँ दीदी, अब हम दोनों एडजस्ट करके रहेंगे...अपनी गृहस्थी की खातिर...अपने प्यारे बेटे के खातिर!''
मालती को अनिवर्चनीय सुख की अनुभूति हो रही थी। उसका दिल इस कदर भर आया था कि चाहते हुए भी उसके मुख से कुछ कहते नहीं बन रहा था। बस, छलछलाती मुसकराती आँखों से वह इस परिवार को देखती रही। मगर उसे अभी तक यह समझ नहीं आ रहा था, आखिरकार यह चमत्कार हो कैसे गया!
स्नेहिल के पापा ने रुँधे कंठ उसकी उत्सुकता शांत की, ''निखिलजी ने अपने मित्र को मेरे पास भेजा। मित्र ने स्नेहिल का वह 'प्यारा पत्र' भी दिया और दी...आपकी ये अनमोल डायरी!''
मालती समझ गई।
उसकी आंखों से खुशी के आँसू बह चले। उसने असीम सुख से स्नेहिल को गोद में बैठाया और बाँहों में भींच फूट-फूटकर रो पड़ी। वे आँसू खुशी के थे...मन की शांति और सफलता के थे।
0 0 0
|
- पापा, आओ !
- आव नहीं? आदर नहीं...
- गुरु-दक्षिणा
- लतखोरीलाल की गफलत
- कर्मयोगी
- कालिख
- मैं पात-पात...
- मेरी परमानेंट नायिका
- प्रतिहिंसा
- अनोखा अंदाज़
- अंत का आरंभ
- लतखोरीलाल की उधारी