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अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

प्रकाश माहेश्वरी

प्रकाशक : आर्य बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6296
आईएसबीएन :81-7063-328-1

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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।

''ह...हाँ।'' मालती का हृदय अनजानी आशंका से काँप उठा।

''तो दीदी...'' स्नेहिल की थरथराती आवाज़ हठात् रुँध गई, ''मेरी चिट्ठी मेरे पापा को भेज दोगी?''

मालती का कलेजा मुँह को आ गया।

''...बोलो न दीदी...भेज दोगी क्या?'' स्नेहिल की आंखों से गरमागरम लावा बहकर बाहर आ गया, ''...मम्मी नहीं भेजेंगी। नाना-मामा भी नहीं भेजेंगे। मारेंगे मुझे बोलूँगा तो।...आप भेज देती?...बोलो न? भेज दोगी क्या? ऐसे क्या देखती हो?...बोलती भी नहीं? बोलो न दीदी, भेज दोगी क्या?

आँ? भेजोगी?''

मालती की आँखें सावन-भादों-सी बरस उठीं। उसका कंठ अवरुद्ध हो गया। स्नेहिल अश्रुपूर्ण नेत्रों से रुँधे कंठ अपना वह 'अनोखा पत्र' उसके सामने कर धड़कते हृदय से अनिमेष निहारे जा रहा था।

मालती का हृदय भावनाओं के ज्वार से कंठ तक उफन आया। जज्बातों को किसी भांति काबू कर उसने स्नेहिल को अपनी गोद में खींच लिया, ''जरूर भेज दूँगी, बेटे।''

''सच्च!'' जोर से किलक स्नेहिल खुशी से उछल उसकी गरदन से झूल गया, ''फिर तो मेरे पापा आएँगे...मेरे को लेने आएँगे...होय-होय...'' उसकी जुंबिश ले स्नेहिल उसकी गोदी से छिटका और उछलता-फुदकता खुशी से कुलाँचे भरता एक मिनट में शाला के मैदान में पहुँच गया। वहाँ उसकी कक्षा के कुछ शिशु खेल रहे थे। मालती ने शिक्षक-कक्ष की खिड़की से खड़े होकर देखा, स्नेहिल पहली बार अपने सहपाठियों के संग खेलने में शामिल हुआ। मालती को उस समय पहली बार मालूम हुआ-यह भोला-भाला, मासूम स्नेहिल कितना शरारती है। साथियों के संग चुहलबाजियाँ करते हुए उसके पोर-पोर से खुशियाँ टपक रही थीं, उसके मुखड़े पर उल्लास के सैकड़ों-हजारों सूर्य दमक रहे थे...उसके दौड़ने, भागने, किलकारने से ऐसा लग रहा था मानो उसे दुनिया का सबसे बड़ा खजाना हाथ लग गया है। एवरेस्ट विजय के पश्चात शायद तेनजिंग-हिलेरी को और विश्वकप जीतने के बाद कपिलदेव को भी इतनी खुशी नहीं हुई होगी जितनी स्नेहिल को इस कल्पनामात्र से हो रही थी कि 'उसके पापा उसको लेने आएँगे!

देख-देखकर मालती का हृदय बैठने लगा। वह अजीब से मानसिक अंतर्द्वंद्व में उलझ गई थी। एक ओर जहाँ उसे इस बात की खुशी हो रही थी कि स्नेहिल का स्वाभाविक खिलखिलाता स्वरूप लौट आया है, वहीं सोच-सोचकर निढाल हुए जा रही थी कि स्नेहिल जब उससे दुबारा अपने पत्र की बाबत पूछेगा तो वह क्या जवाब देगी? उसे तो स्नेहिल के पिता का पता भी नहीं मालूम? घर से स्नेहिल की माँ या मामा छोड़ने-लेने आते थे, वे बतलाने वाले नहीं। फिर कैसे भेजेगी स्नेहिल का यह अनोखा हृदयस्पर्शी पत्र?

हे भगवान! मालती खिड़की की चौखट पर सिर टिका झूल गई-कैसी महती जिम्मेदारी में झोंक गया है यह भोला शिशु! कैसे पाएगी इस समस्या से निजात!

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    अनुक्रम

  1. पापा, आओ !
  2. आव नहीं? आदर नहीं...
  3. गुरु-दक्षिणा
  4. लतखोरीलाल की गफलत
  5. कर्मयोगी
  6. कालिख
  7. मैं पात-पात...
  8. मेरी परमानेंट नायिका
  9. प्रतिहिंसा
  10. अनोखा अंदाज़
  11. अंत का आरंभ
  12. लतखोरीलाल की उधारी

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