लोगों की राय

कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

प्रकाश माहेश्वरी

प्रकाशक : आर्य बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6296
आईएसबीएन :81-7063-328-1

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

335 पाठक हैं

‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।

''इधर आ।'' उसने आवाज़ की शुष्कता पर गौर न कर मेरा हाथ पकड़ा और पास ही पार्क में ले गया।

मैं घिसटता हुआ गया।

''सुन, नौकरी करेगा?''

''क्या?'' मैंने शायद बराबर नहीं सुना।

''अबे नौकरी। देख, सड़कों के जो ठेकेदार हैं न-बीजू साहब, उनको एक आदमी की ज़रूरत है। मज़दूरों की हाजिरी रखना और पेमेंट करना। छह सौ मिलेंगे।''

''सिर्फ छह सौ?'' मेरा दिल बैठ गया, ''...इतना पढ़-लिख डिग्री ली तो मजदूरों की हाजिरी भर रखने के लिए?''

''मार गोली डिग्री को। इस साले कागज के टुकड़े की कोई वेल्यू है? बोल। अरे, अखबार को पढ़ने के बाद उसे बेचने जाओ तो उसकी रद्दी के भी पैसे मिल जाते हैं। इस कागज के टुकड़े से कुछ मिला? पंद्रह साल पढ़ने के बाद ये जो डिग्री मिली है इसके मोटे कागज को देख रद्दीवाला भी लेने से इंकार कर देता है। फिर बोल, क्या फायदा?''

मैं सोच में डूब गया।

''यह सोचने का वक्त नहीं है, रणजीत।'' उसकी आवाज़ भर्रा गई, ''...बेकार रहने पर चारों ओर से सिर्फ़ ताने मिलते हैं। जो भी मिलता है, मजाक उड़ाता है। सहायता कोई नहीं करता। नौकरी लग जाएगी, कुछ वेल्यू बन जाएगी। मेरे भैया, मान जा यार, काम करने वाला चारों ओर पूजा जाता है। भले छह सौ मिलें, ये जो रोज-रोज के ताने, हँसी..., ये तो खत्म हो जाएगी? और नौकरी का क्या है, जैसे अभी फॉर्म भर रहा है, तब भी भरते रहना। बीजू साहब रोकते हैं क्या?...उल्टे वे स्वयं जिस पर विश्वास करने लगते हैं उसे किसी दफ्तर में फिट करने की कोशिश करते हैं...''

मैंने हौले से नज़रें उठाई, मेरी आँखों में आँसू थे, ''सच कहूँ चमन? इस वक्त भीख माँगने को छोड़कर मुझे कोई कुछ भी काम करने को कहता, मैं तैयार था। इस भटकाव के अंत की कुछ तो शुरुआत हो! चल, अभी चलते हैं।'' मेरे पैरों को पंख लग गए थे।

 

 

 

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. पापा, आओ !
  2. आव नहीं? आदर नहीं...
  3. गुरु-दक्षिणा
  4. लतखोरीलाल की गफलत
  5. कर्मयोगी
  6. कालिख
  7. मैं पात-पात...
  8. मेरी परमानेंट नायिका
  9. प्रतिहिंसा
  10. अनोखा अंदाज़
  11. अंत का आरंभ
  12. लतखोरीलाल की उधारी

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai