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तारों की चूनर

भावना कुँअर

प्रकाशक : शोभना प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6303
आईएसबीएन :81-903673-3-1

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डॉ. भावना कुँअर का प्रथम हाइकु-संग्रह ‘तारों की चूनर’

Taron Ki Choonar--A Hindi Book by Bhavana Kunwar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भावना कुँअर प्रवासी भारतीयों में हिन्दी नवजागरण काल की उदीयमान नक्षत्र हैं। ‘तारों की चूनर’ उनका पहला हाइकु संग्रह है पर वे विश्व के हाइकु कवियों को पिछले तील सालों से अपनी प्रतिभा से आश्वस्त कर चुकी हैं। उन्होंने हिन्दी वेब पर अनुभूति और हाइकु दर्पण द्वारा 2005 से 2007 तक चलाए जाने वाले हाइकु आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और भारत में प्रसिद्ध हाइकुकार डॉ. जगदीश व्योम के संरक्षण में अपनी हाइकु लेखन की प्रतिभा को निखारा। वे संवेदनशील कवयित्री ही नहीं कुशल कलाकार और कला संरक्षक भी हैं। उन्होंने जिस तरह सजाकर यह संग्रह प्रस्तुत किया है उससे ये न केवल साहित्य की अनुपम कृति बन कर निखरा है अपितु संग्रहणीय उपहार भी बन गया है, जिसे हर व्यक्ति खरीदना और सँभालकर रखना चाहेगा।

प्राक्कथन


हिन्दी हाइकु कविता निरन्तर लोकप्रिय होती जा रही है। अपने लघु आकार के कारण हाइकु कविता संवेदनशील रचनाओं की विशेष पसन्द है। लघु आकार किन्तु बेहद ऊर्जावान देश जापान में जन्मी, पली, बढ़ी, हाइकु कविता विश्व के विस्तृत मानचित्र पर देखते ही देखते छा गई। हाइकु कविता जब अपने जन्मदाता देश से बाहर निकली तो उसकी भाषा और भाव देशकाल के अनुरूप बदलते चले गए और यह स्वाभाविक भी है। हिन्दी भाषा में लिखे जाने वाले हाइकु का जापानी हाइकु की भाव-भूमि से कुछ अलग होना स्वाभाविक है क्योंकि एक रचनाकार अपने इर्द-गिर्द की अनुभूति को ही शब्दों में ढालता है। वहाँ की वनस्पति, मौसम, संस्कृति, सभ्यता, परम्पराएँ, लोक जीवन, पशु-पक्षी आदि का प्रतिबिम्ब किसी न किसी रूप में कविता में ही है, यही कविता की अपनी मूल पहचान भी होती है। हिन्दी हाइकु कविता में भी जो अन्तर जापानी हाइकु से हटकर दिख रहा है उसे इन सब सहज और स्वाभाविक बातों का ध्यान रखते हुए ही देखना चाहिए। जापानी हाइकु या अन्य किसी भाषा की हाइकु कविता के साथ हू-ब-हू तुलना करना और उस इस कसौटी पर खरा न उतरने के कारण खारिज कर देना हिन्दी हाइकु के साथ अन्याय है जो किसी प्रकार उचित नहीं है। साथ ही हिन्दी हाइकुकारों को भी इस बात का ध्यान रखना ही चाहिए कि जल्दबाजी और गिनती बढ़ाने के हास्यास्पद प्रयास में कुछ भी लिखकर हाइकु समझ लेना भ्रामक भूल है। हाइकु प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण और क्षणांश की विशिष्ट अनुभूति की अभिव्यक्ति है। किसी सपाट बयानी या राजनीति अथवा सामाजिक विसंगतियों पर सत्रह अक्षर में कुछ भी टिप्पणी कर देना हाइकु नहीं है, इसे हाइकुकारों को समझना ही होगा।

हिन्दी हाइकु कविता के प्रचार-प्रसार के लिए प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा ने प्रेरणा पुरुष के रूप में जो कार्य किया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। प्रो. वर्मा ने हिन्दी हाइकु कविता का जो पौधा रोपा था वह आज सघन वट-वृक्ष के रूप में निरन्तर फैलता जा रहा है। हिन्दी की शायद ही कोई पत्र-पत्रिका हो जो हाइकु प्रकाशित न कर रही हो, यह हाइकु कविता के लिए प्रसन्नता की बात है। साथ ही निरन्तर हाइकु संग्रहों का प्रकाशन तेजी से हो रहा है, यह भी हाइकु कविता की लोकप्रियता का ही परिचायक है।

हिन्दी की अनेक वेबसाइट (जालघर) हिन्दी हाइकु कविताओं का प्रकाशन कर रही है। ‘अनुभूति’ और ‘अभिव्यक्ति’ न हो तो हिन्दी हाइकु कविता के लिए अपने विशेषांक सुन्दर चित्रों के साथ प्रकाशित किए हैं और प्रवासी भारतीय रचनाकारों को हाइकु के प्रति आकर्षित किया है। अनेक प्रवासी भारतीय बहुत अच्छे हाइकु लिख रहे हैं, ‘हाइकु दर्पण’ पत्रिका का ‘प्रवासी भारतीय हाइकु अंक’ इसका प्रमाण है। भारत से बाहर के देशों में रहकर जो लोग भारतीय संस्कृति, परम्परा और हिन्दी भाषा के प्रति पूरी निष्ठा, समर्पण भाव से जुड़े रहकर रचनात्मक कार्य कर रहे हैं, उन पर सभी भारतीयों को गर्व होना चाहिए। ये लोग हिन्दी भाषा एवं साहित्य को विश्व स्तर पर सम्मान दिलाने तथा लोकप्रिय बनाने के लिए पूरे मनोयोग से कार्य कर रहे हैं। इन्हीं हिन्दी प्रेमी प्रवासी भारतीय रचनाकारों में डॉ. भावना कुँअर का नाम बड़ी तेजी से उभरकर सामने आया है। भावना कुँअर युगांडा में रहकर हिन्दी साहित्य का सृजन कर रही हैं। हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं के साथ-साथ हाइकु कविता उनकी पहली पसन्द है। डॉ. भावना कुँअर के पास अनुभव की ऐसी अनुपम निधि है जो सभी को आसानी से नहीं मिल पाती मसलन उनके पास भारत से बाहर के देशों में समय-समय पर की गई यात्राओं की विशेष अनुभूतियों की अद्भुत धरोहर है जिसे वे अपनी हाइकु कविताओं में बड़ी कुशलता के साथ प्रस्तुत कर रही हैं। प्रकृति के प्रति उनका लगाव, दीन-हीनों के प्रति उपजी संवेदना, पशु-पक्षियों के साथ आत्मीयता, प्रियजनों से दूर रहने की कसक, अपनी मातृभूमि से अलग रहने की पीड़ा, विदेशी पर अपनत्व का अभाव आदि जो कुछ भी उनके अवचेतन में रचा-बसा है वह सब कुछ जल्दी और बहुत जल्दी बाहर आने के लिए मचलता-सा दिखाई देता है, कुछ गीतों के रूप में, कुछ चित्रों के रूप में तो कुछ यात्रा के अनुभवों के रूप में।

‘तारों की चूनर’ डॉ. भावना कुँअर का प्रथम हाइकु-संग्रह है। इस रूप में इस संग्रह का अपना अलग महत्त्व है और सदैव रहेगा। संग्रह का मुख्य पृष्ठ भावना जी ने स्वयं बनाया है तथा प्रत्येक हाइकु कविता के लिए भावपूर्ण और सजीव चित्रांकन सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री बी. लाला ने किया है। चित्रों के साथ हाइकु कविताएँ सब कुछ बोलती और भाव संवेदनाओं को पाठक तक सहजता से पहुँचाने में पूर्णतया सक्षम है, यही इस संग्रह की उपलब्धि है।

इस संग्रह के हाइकु पाठकों को पसन्द आएँगे। अनेक हाइकु ऐसे हैं जिन्हें पढ़ते समय चित्र-सा उपस्थित हो जाता है और कई-कई बार पढ़ा जा सकता है। डॉ. भावना कुँअर का यह पहला हाइकु संग्रह प्रवासी भारतीयों के अन्य संग्रहों के प्रकाशन की प्रेरणा बनेगा, ऐसा हमारा विश्वास है। पाठकों के सकारात्मक विचार एवं सुझाव रचनाकार को अतिरिक्त सम्बल प्रदान करेंगे जिससे भविष्य में और भी श्रेष्ठ हाइकु हिन्दी साहित्य संसार को मिल सकेंगे। डॉ. भावना कुँअर के प्रथम हाइकु संग्रह के प्रकाशन के अवसर पर मैं उन्हें हार्दिक शुभ कामनाएँ और बधाई देता हूँ।

दिल्ली स्वतन्त्रता दिवस, 2007
डॉ. जगदीश व्योम


भूमिका



मेरा शोध विषय हिन्दी गज़ल पर आधारित था किन्तु अपने शोध के दौरान मुझे गज़ल के अतिरिक्त साहित्य की अन्य विधाओं का अध्ययन करने का भी अवसर मिला। उसी समय जापानी कविता ‘हाइकु’ जो कि अब तक हिन्दी साहित्य की चर्चित विधा है, मुझसे अछूती नहीं रही। पाँच-सात-पाँच अक्षरों में लिखी तीन पंक्तियों की रचना ‘हाइकु’ ने मुझे बहुत प्रभावित किया। जो बिहारी की ‘गागर में सागर’ वाली उक्त को पूर्ण चरितार्थ करती है। हाइकु से परिचित होने के बाद से ही मेरे अन्तर्मन में भी कई भाव विचरने लगे जो मेरे अनुभवहीन लेखन के दौरान पंक्तियों के रूप में परिवर्तित होने लगे और समय के साथ-साथ अनुभवी अग्रजों के निर्देशन में पनपने के लिए आज तक तत्पर हैं।

अपने हाइकु के सफर के दौरान ही पारिवारिक स्थानान्तरण के कारण भारत से अलग होना पड़ा और क्षण भर के लिए ऐसा लगा कि अब अपनी रुचि के विषयों से भी अलगाव सा न हो जाये। नई जगह आने के दो-तीन माह तो अपने आपको नये परिवेश से अवगत कराने में एवं अपनों से बिछड़ने के दर्द को भरने में ही निकल गए। तभी एक दिन जब कम्प्यूटर पर इंटरनेट पर बैठी तो आँखें अपनी रुचि के विषयों को ढूँढ़ने लगीं और तभी मनपसंद साइट ‘अनुभूति’ एवं ‘अभिव्यक्ति’ पर डॉ. व्योम द्वारा हाइकु पर लिखा लेख पढ़ने का सौभाग्य मिला। इस लेख को पढ़ने के बाद अपनी नियमित डायरी को अपनी अलमारी में से निकालकर फिर से हाइकु लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई।

आज इण्टरनेट की वास्तव में सराहना करनी पड़ेगी जिसने हमें किसी भी सीमा में बाधित न रखकर विश्व के किसी भी हिस्से में होते हुए भी अपनी अभिरुचि को जीवित रखने में मदद की है। धीरे-धीरे सभी चर्चित हुई-पत्रिकाओं में अपने हाइकु प्रकाशित कराने का मुझे अवसर मिला तथा हाइकु की लोकप्रिय पत्रिका ‘हाइकु दर्पण’ के प्रवासी हाइकुकार अंक में भी मेरे हाइकु प्रकाशित हुए। मित्रों और शुभ चिन्तकों की सराहना एवं उनके द्वारा अपनी हाइकु कविताओं को पुस्तक रूप देने के आग्रह के बाद इस संग्रह की रूप रेखा मेरे मस्तिष्क में घर कर गई और परिणाम स्वरूप आज मैं इस संग्रह को आपके हाथों तक पहुँचा सकी।

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