गजलें और शायरी >> आँखों आँखों रहे आँखों आँखों रहेवसीम बरेलवी
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वसीम बरेलवी हमारे दौर के उन मशहूरो-मारूफ़ शायरों में हैं जिन्हें उनकी शायरी ने सुनने और पढ़ने वालों को महबूब बना दिया है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वसीम बरेलवी हमारे दौर के उन मशहूरो-मारुफ़ शायरों में हैं जिन्हें उनकी शायरी ने सुनने और पढ़ने वालों में महबूब बना दिया है। अपनी भाषा की सरलता और चिन्तन में ज़िन्दगी के आम सरोकारों से ग़ज़ल को जोड़ कर वसीम साहब ने अपना रिश्ता एक सन्तुलन के साथ अवाम और अदल से जोड़ा है, जो बहुत बड़ी बात है। हमारे समाज को आज जिस शायरी की ज़रूरत है, मुहब्बत के रिश्तों को जिस आँच की ज़रूरत है और हमारे अदब को जिस सच्चाई की ज़रूरत है, वह सब कुछ वसीम साहब की शायरी में मौजूद है। जिस तरह इनकी शख़्सियत से हिन्दुतानी मिट्टी की महक फूटती है उसी तरह उनके कलाम से हमारी तहज़ीब का नूर झलकता है। मुझे खुशी है कि उनकी शायरी की यह पुस्तक उस दौर में प्रकाशित हो रही है, जब मैं भी मुशायरों के अदबी सफ़र में वसीम साहब का एक सहयात्री हूँ।
दीक्षित दनकौरी
ये सारी बातें मैं इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि मैं इस समय उर्दू साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले विश्वविख्यात शायर वसीम बरेलवी जी के गीतों को पढ़ रहा हूँ। उनके गीतों में मुझे भारतीय समाज में व्याप्त उसी लोकतत्व की प्रधानता मिली है। वह लोकतत्व जो वसीम जी के गीतों को हिन्दी गीत परम्परा की उस कड़ी से जोड़ने में सक्रिय हो रहा है जो लोकगीतों के नाम से जानी जाती है और सदैव सम्मान पाती रही है। उनके गीतों में जो भावाभिव्यक्ति हुई है, उसका अधिकांश ऐसा है जो प्रेम करने वाली एक ग्रामीण भोली-भाली लड़की के मन को दर्शाता है। यही नहीं, उसकी भाषा और अभिव्यक्ति शिल्प की बनावट से बहुत दूर, सहज और सरल है। सरलता और सहजता युग-युगों से व्याप्त आकर्षण और आनन्द का विषय रही है। वसीम जी के ये गीत इसी कारण हृदय में छूने वाले मर्मस्पर्शी गीत हैं। वे प्यारे हैं, क्योंकि वे सरल हैं। उनमें सम्मोहन है, क्योंकि वे सहज हैं।
डॉ. कुँवर बैचेन
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