लोगों की राय

नारी विमर्श >> चैत की दोपहर में

चैत की दोपहर में

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6393
आईएसबीएन :0000000000

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

162 पाठक हैं

चैत की दोपहर में नारी की ईर्ष्या भावना, अधिकार लिप्सा तथा नैसर्गिक संवेदना का चित्रण है।...


लिहाजा बेटे की इच्छा-अभिलाषा पर पानी फेरना उनका एक खास काम था। टूटू बेशक रूबरू कुछ कहने का साहस नहीं कर पाता। पिता का शरणापन्न होता। विख्यात व्यवसायी शरत मिसिर संकुचित होकर निवेदन करते, ''सुन रही हो? टूटू को किसी नृत्य समारोह का टिकट मिला है। (खरीदा नही है, मिल गया है, जैसे कोई बाँट रहा था।) सो बहूरानी के साथ देख आए तो हर्ज ही क्या हे? तुम्हारा क्या विचार है?''
मणिकुंतला उपेक्षा भरे स्वर में कहती, ''बहूरानी अभी कहाँ जाएगी? आज लक्ष्मीघर में 'पांचाली' पढ़ना है न?''
यद्यपि पांचाली पढ़ने की बात कोई अहमियत नहीं रखती क्योंकि पाँच मिनट का काम है, लेकिन उनके मुँह से निकल पड़ा है तो अब वश नहीं चल सकता।
समझ-बूझकर पाँचालीहीन दिन का चुनाव कर लेने से ही क्या होगा? किसी भी निवेदन को ठुकरा देने की सामर्थ्य है उस महिला में।
''सुन रही हो, टूटू के कुछ मित्र सपत्नीक दीघा घूमने जा रहे हें। टूटू को दल में शामिल करने के लिए बड़ा जोर डाला है। सो पत्नी को साथ ले वह भी क्यों-नही चला जाए, कहो ठीक कह रहा हूँ न? कोई दो-तीन दिन की बात तो है नहीं।''
मणिकुंतला अवज्ञा के साथ कहती, ''बहूरानी को साथ लेकर? बहूरानी दसियों मर्द के दल के साथ हुल्लडबाजी करने जाएगी?''
''अहा, उन लागों की पत्नियाँ भी तो जा रही हैं।''
''जाने दो। मेरे घर की बहू नहीं जाएगी।''
मणिकुंतला के घर की बहू सास के साथ शादीघर में भोज खाने जाएगी (तमाम अंगों को जेवरात से लादकर), धनी सगे-संबंधियों के घर पुष्पांजलि देने। दासी को साथ ले कीमती सीट पर बैठ स्टार रंगमहल में थियेटर देखने।
जाने से अनिच्छा प्रकट करे तो इसका अर्थ है-मणिकुंतला को अपमामित करना। अपमान-बोध की मात्रा उनके अन्दर तीव्रतर है। सास के सामने लिखने-पढ़ने से भी उन्हें अपमान का अहसास होता है जबकि पुत्र और बहू के साथ एक ही मेज पर बैठकर खाना खाने में उन्हें एतराज नहीं है और वह इसलिए कि संगमरमर की वह डाइनिंग टेबल मणिकुंतला के पिता के द्वारा दी गई है। इसके अलावा
वह गहरे लाल रंग की गाड़ी भी उन्होंने ही अपने नाती की पत्नी को दी है। उन वस्तुओं का सद्व्यवहार आवश्यक है।
बहू एम० ए. पास है, यह मणिकुंतला के लिए फख्र की बात। बहू गाड़ी चला सकती है, यह भी मणिकुंतला के लिए गौरव की है। लेकिन गौरव कहीं हाथ से खिसक न जाए। सारा कुछ उनकी मुट्टी में रहे। क्योंकि वे उन सबों से बहुत उच्चे स्तर पर हैं, अत्यन्त गौरवमयी हैं।
इधर बेटे का असंतोष शरत मित्तिर से छिपा नहीं रहा; क्योंकि पिता-पुत्र एक साथ ही रहते हैं। बाप का कार्यस्थल ही बेटे का कार्यस्थल है। बेटे को शरत मित्तिर ने अपने बिजनेस का पाटर्नर-कम-मैनेजर बना रखा है। कहा था, उसे इतनी विद्या-बुद्धि है और दिमाग भी तेज है। अपने भविष्य को बनाने के काम में लगे। दूसरे के यहाँ नौकरी करने क्यों जायेगा?
पिता-पुत्र में, काफी घनिष्ठता है, छुटपन से हीं-एक रोबीले राजा के दो प्रजाजनों में जिस प्रकार रहती है। अथवा दबंग सास की दो बहुओं में।
उसी घनिष्ठता की फलश्रुति है लेक टाउन के मकान की परिकल्पना।
शरत मित्तिर ने प्रस्ताव रखा था, ''वह जमीन कब से खरीद कर यों ही रख दी है, जैसा जमाना है किसी भी दिन हाथ से निकल जा सकती है। इसीलिए सोच रहा हूँ वहाँ टूटू के लिए एक खास मकान बना दियां जाए।
सुनकर मणिकुंतला की दोनों भौंहों के कोण नाक पर आकर जुड़ गए थे। ''और एक मकान! खासकर टूटू के लिए? क्यों, इस मकान में टूटू का गुजर नहीं हो रहा है?''
''अहा, ऐसा क्यों होगा? कारण तो बता चुका हूँ। उसके अलावा दमदम की उस जमीन पर एक कारखाना खोलने का विचार है। करीब ही कोई आदमी रहेगा तो सुविधा होगी!''
उसके बाद सवाल-जवाब का सारांश यही है-वालीगंज इस मकान में कौन रहेगा?
"हम रहेंगे, औंर कौन! हम तो लेक टाउन नहीं जा रहे हैँ।''
''इसका मतलब बेटा-बहू स्वतंत्र होकर गृहस्थी बसाना चाहते है?
''अरे, ऐसी बात कहाँ है? वे क्यों चाहने लगे? मैं ही चाहता हूँ। गृहस्थी चलाना जरा सीखे तो सही। देखे कि गहस्थी चलाना कितनी मुश्किल का काम है। हजरत की शाहखर्ची, हो सकता है, कम हो जाए। देखा जाए क्या करता है। इस घर का दरवाजा तो कोई बन्द नहीं होने जा रहा है। गड़बड़ी देखेंगे तो चले आने को कहेंगे, मकान किराए पर लगा दिया जाएगा।...आजकल सबसे फायदेमन्द कारोबार है मकान किराए पर लगाना।''
यानी टूटू मित्तिर चाहे जितने ही फख्र के साथ क्यों न कहे कि तुम्हें सास के शिकंजे से लाकर आजादी का सुख दिया है, लेकिन यह एक झूठा अहंकार है। षड्यंत्र का नायक उसका बाप है। और ऐसा उसने लड़के के प्रति प्रेम के कारण नहीं, बहू के प्रति ममता-वश ही किया है। उसे एक 'जीवन' प्राप्त करने का सुयोग दिया था शरत मित्तिर ने। पर लड़के के सामने ऐसा हाव-भाव दर्शाया है जैसे सारा कुछ बेटे की राय और परामर्श से किया है।
और बाहरी तौर पर उद्देश्य बताया है दमदम में भविष्य में कारखाना खोलने का! किस चीज़ का कारखाना?
यह अब भी ठीक तौर से निश्चित नहीं किया गया है। इस सम्बन्ध में सोच रहे हैं।

मणिकुंतला क्या अपने पति की इस चालाकी को समझ नहीं सकी थी?
मणिकुंतला यदि चाहती तो इस चालाकी को नाकामयाब कर सकती थी। लेकिन वैसा उन्होंने नहीं चाहा था। क्योंकि बेटे की पत्नी के आने के बाद उन्होंने महसूस किया था कि उनका व्यक्तित्व चाहे कितना हो महान क्यों न हो, लेकिन फिलहाल उनका आधिपत्य एक विशेष व्यक्तित्व के रू-ब-रू खड़ा है।
ऊपरी तौर पर विनम्र, अनुगत और मीठे स्वभाव की इस स्त्री को वे कभी अपने शिकंजे में रख नहीं सकेगी, इसका उन्हें पूरी तरह अहसास हो गया है।
पति के खानदान में आने के बाद उनके सगे-सम्बन्धियों को मन-ही-मन निहायत गृहस्थ समझ, मणिकुंतला उन्हें हेय दृष्टि से देखती आयी हैं, लेकिन इस स्त्री को उस नजरिए से नहीं देख पाएँगी। पति-पुत्र की जिस तरह उपेक्षा करती रही हैं, उसकी नहीं कर पाएँगी।
लिहाजा दूर रहने में ही मंगल है।
मणिकुंतला के भाग्य ने उस 'मंगल' को लाकर उनके हाथ में रख दिया।
मणिकुंतला ने क्रोध का प्रदर्शन न कर अपने आपको हल्का होने से बचा लिया। क्योंकि गुस्सा करेंगी तो वह हार जाना ही-होगा। मणिकुंतला ने सिर्फ यही शर्त रखी कि हर रविवार को यहाँ आकर पूरा दिन बिताना होगा। भाव ऐसा था जैसे मैदान में घूमने जा रहे हो तो जाओ मगर रस्सी मेरे आँगन के खूँटे में बँधी रहेगी, यह बात ध्यान में रखना।
शरत मित्तिर अपनी परिकल्पना से खुश हैं। मकान किस तरह बन रहा है, इसकी देखरेख करने के बहाने बीच-बीच में चले आते हैं और कहते हैं, बहूरानी के हाथ की चाय पीने चला आया।''
इसके अलावा हर महीने तो आते ही रहते हैं, बहूरानी को पॉकेट-मनी देने के खयाल से।
अवंती को संकोच का अहसास होता है। कहती है, ''इतने रुपए लेकर क्या करूँगी, बाबूजी?''
बाबूजी हा-हा कर हँसते हुए कहते हैं, ''यह अच्छी बात सुनाई तुमने, बिटिया, इस तरह की दुर्भावना की बात किसी के मुंह से नहीं सुनी है।''
''खर्च करने के लिए आखिर कोई प्रयोजन भी तो होना चाहिए।''
''क्यों? बिना जरूरत के ही करोगी? अपने मन के लायक गहना-साड़ी खरीदोगी।''
अवंती हँस देती, ''साड़ी-गहना? माफ कीजिए। वह सब जितना मेरे पास है, जिन्दगी-भर न खरीदूँगी तो भी काम चल
जाएगा।"
''तो फिर जितनी मर्जी हो, पेट्रोल जलाना। जितनी मर्जी हो, घूमा-फिरो, मर्जी हो तो किताबें खरीदो। किसी को कुछ देने की इच्छा हो तो देना। मेरे लड़के की परवाह नहीं करनी होगी। कैफियत भी नहीं देनी होगी।"
अवंती को समझने में असुविधा नहीं होती कि इस उदारता के आह्लाद का उपयोग शरत मित्तिर 'हर हाइनेस' कीं नजरों से बचाकर करते हैं। मन-ही-मन जरा करुणा की हँसी हँसती है। लेकिन इस मेरूदण्डहीन, शक्तिहीन, पर सही अर्थों में भले आदमी को प्रेम और श्रद्धा की दृष्टि से देखती है। सोचती है, टूटू के अन्दर उसके मातृ-चरित्र का प्रभाव है। क्योंकि माँ से वह डरता है और बाप के सामने सहज बना रहता है। लेकिन बाप के चरित्र की उदारता उसके अन्दर नहीं है। वह जैसे बहुत ऊँचाई से देखता हे।
शरत मित्तिर हालाँकि पुत्रवधू को निर्बंध आदेश दिए हुए हैं कि 'मेरे लड़के की परवाह नहीं करनी होगी, कैफियत नहीं देनी होगी, तो भी अवंती यदि अपनी इच्छानुसार चार पुस्तकें खरीदकर ले आती है तो टूटू अप्रसन्नता मिश्रित क्षुब्ध हंसी हँसते हुए कहता है,  ''इतनी फिजूलखर्ची का कौन-सा अर्थ है? हाथ में रुपया आ जाए तो खर्च करना क्या जरूरी है? बैंक में एकाउंट खोल दे सकती हो। ऐसे में थोड़ा-बहुत जमा हो सकता है।"
अवंती ने हँसकर कहा था, ''यह काम तो तुम्हीं लोग कर रहे हो।"
''इससे क्या होता है? सभी को अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।"
तो भी अवंती ने इस 'सुगंध' को स्वीकार करने में उत्साह नहीं दिखाया है। कहा है, ''तुम लोग अपना जमा किया हुआ रुपया-पैसा किसी मिशन को दान नहीं कर दोगे। इसलिए अलग से अपने भविष्य के बारे में सोचने क्यों जाऊं?''
जीवन जब स्थिर लय और गति के साथ चलता है, आदमी इसी प्रकार का 'निश्चिन्त, विश्वास लिये निश्चिन्त रहता है।
अवंती का भविष्य टूटू से अलग हो सकता है, इस तरह का सवाल अवंती के सामने खड़ा नहीं हुआ है।
लेकिन सहसा यदि यह सवाल अँधेरे के परदे की ओट से झाँकने लगे तो उस समय यही बात सोचकर अवंती को क्षुब्ध हँसी हँसना होगा। वह रुपया तो टूटू मित्तिर के पिता का ही रुपया-पैसा है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai